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भारतीय जनता पार्टी का अश्वमेध रथ देश को भगवामय बनाने की लक्ष्य सिद्धि की ओर 

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06 Apr 25
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भारतीय जनता पार्टी का अश्वमेध रथ देश को भगवामय बनाने की लक्ष्य सिद्धि की ओर 

विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी मानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का इतिहास नया नहीं वरन काफी पुराना और कई उतार चढ़ाव भरा रहा है। वर्तमान भाजपा की स्थापना 1980 में हुई थी,लेकिन इसकी मूल जड़ें 1951 में डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ से जुड़ी हुई हैं।

15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के बाद  डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी देश के प्रथम प्रधानमंत्री  पण्डित जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल के सदस्य थे लेकिन,वे कांग्रेस पार्टी की धर्मनिरपेक्ष राजनीति और मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ थे। पण्डित नेहरू से इसी वैचारिक अनबन के चलते उन्होंने 19 अप्रैल 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने एक अलग राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ की स्थापना की। उन्होंने राष्ट्रवाद और हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया। हालांकि जनसंघ ने 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में मात्र तीन सीटें मिली और 1977 तक वह संसद में अल्पमत में ही रही।

वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया, जिसका भारतीय जनसंघ ने जोरदार विरोध किया। इसके बाद जब 1977 में आपातकाल खत्म हुआ और देश में लोकसभा के आम चुनाव हुए तब देश के सभी विपक्षी दलों ने एक साथ मिलकर एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया जिसमें जनसंघ भी शामिल हुई और पुराने कांग्रेसी मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी लेकिन अंतर्विरोधों के कारण यह सरकार ढाई वर्ष में ही गिर गईं । जनता पार्टी की सरकार में शामिल दल बिखर गए और जनता सरकार का विघटन  हो गया। इन परिस्थितियों में भारतीय  जनसंघ ने अपना मार्ग चुना और 1980 में    भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी/भाजपा) के नाम से एक नए दल की स्थापना की। अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के पहले अध्यक्ष बने। हालांकि शुरुआत में पार्टी को ज्यादा सफलता नहीं मिली, लेकिन बाद में राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को बहुत ताकत दी।

1980 के दशक में विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में बाबरी ढांचा के स्थान पर राम मंदिर निर्माण के उद्देश्य से एक देश व्यापी अभियान शुरू किया। भाजपा ने इस आंदोलन का समर्थन किया और हिन्दुत्व की विचारधारा को बढ़ावा दिया। इसके बाद भारतीय राजनीति में भाजपा का ग्राफ ऊपर की ओर बढ़ता गया। आज भाजपा भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है, जिसके लगभग  20 करोड़ से अधिक सदस्य हैं। पार्टी ने पूरे देश को भगवामय बनाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए कई राज्यों में अपनी सरकारें बनाई हैं और केंद्र में भी कई बार सत्ता में आई है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के लिए करिश्माई  नेता साबित हुए है। मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने 2014,2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में लगातार जीत हासिल कर केन्द्र  में भाजपानीत सरकार बनाई है।

भाजपा की विचारधारा और नीतियों ने भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला है। पार्टी की सफलता के पीछे इसके संगठन, नेतृत्व और विचारधारा का महत्वपूर्ण योगदान है। भाजपा दक्षिणपन्थी राजनीति से जुड़ी हुई है और इसकी नीतियों ने ऐतिहासिक रूप से एक पारंपरिक हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को राष्ट्रीय पटल पर प्रतिबिंबित किया है। भाजपा के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ घनिष्ठ वैचारिक और संगठनात्मक संबंध हैं। आज देश के 31 में से 21 प्रदेशों में भाजपा और सहयोगी दलों की सरकारें है । वर्तमान में भाजपा के संसद के निचले सदन लोकसभा में 240 सांसद जबकि उच्च सदन राज्य सभा में 98 सांसद हैं। भाजपा के देश भर में 1,656 विधायक और 165 विधान परिषद सदस्य है। इस प्रकार भारतीय संसद के साथ-साथ विभिन्न राज्य विधानसभाओं में जन प्रतिनिधित्व के मामले में भाजपा देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज भाजपा के सबसे अधिक चमकते नक्षत्र और चेहरे हैं। भारत में 19 अप्रैल से 1 जून 2024 तक सात चरणों में लोकसभा के आम चुनाव हुए, जिसमें लोकसभा के सभी 543 सदस्यों का चुनाव किया गया। 18वीं लोकसभा के गठन के लिए 4 जून को मतों की गिनती की गई और परिणाम घोषित किया गया। पिछले साल 7 जून 2024 को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के समक्ष भाजपा और सहयोगी दलों के 293 सांसदों के समर्थन की पुष्टि की। नरेन्द्र मोदी का  प्रधानमंत्री के रूप में मोदी का यह तीसरा कार्यकाल है । केन्द्र में पहली बार भाजपा ने अपने अकेले बलबूते की बजाय गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया है जिसमें इस बार आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी और बिहार की जनता दल (यूनाइटेड) दो मुख्य सहयोगी के रूप में उभरी है। हालांकि 2014 और 2019 के आम चुनावों में मिली जीत के बाद भी एनडीए (राजग) के सहयोगी दल मोदी मंत्रिपरिषद का अभिन्न हिस्सा रहते आए है।

नरेन्द्र मोदी से पहले केन्द्र में भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 1998 से 2004 तक भाजपानीत राजग सरकार रही थीं।
लेकिन इसके पहले अटल बिहारी वाजपेयी को एक बार 13 दिनों और दूसरी बार 13 महीनों बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा था।

1996 में कुछ क्षेत्रिय दलों ने मिलकर केन्द्र में सरकार गठित की लेकिन उनका कार्यकाल बहुत कार्यकाल बहुत अल्प रहा और 1998 में  देश में मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े। आरम्भ में भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में समता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और शिव सेना आदि सहयोगी दल शामिल  थे बाद में इसके साथ ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) और बीजू जनता दल भी  शामिल हुई। इन क्षेत्रिय दलों में शिव सेना को छोड़कर भाजपा की विचारधारा किसी भी दल से नहीं मिलती थी। तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के बाहर से समर्थन के साथ राजग ने बहुमत प्राप्त किया और अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमन्त्री बने। हालाँकि, 1999 में यह गठबंधन उस समय टूट गया था जब अन्ना द्रमुक नेता जयललिता ने वाजपेई  सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और इसके परिणामस्वरूप पुनः लोकसभा के आम चुनाव हुए तथा 13 अक्टूबर 1999 को भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को बिना अन्ना द्रमुक के पूर्ण समर्थन मिला और गठबन्धन ने संसद में 303 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत प्राप्त किया तथा भाजपा ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुये 183 सीटों पर विजय प्राप्त की। अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमन्त्री बने और लालकृष्ण आडवाणी उप-प्रधानमन्त्री तथा गृहमंत्री बने। भाजपा नीत इस सरकार ने अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण किया। यह सरकार वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही।

जनसंघ का इतिहास

यदि भारतीय जनता पार्टी की मूल पार्टी भारतीय जनसंघ के इतिहास पर दृष्टि डाले तो पायेंगे कि जनसंघ का प्रथम अभियान जम्मू और कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय की मांग को लेकर किया गया आंदोलन था। केन्द्र की तात्कालीन कांग्रेस सरकार ने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कश्मीर में प्रतिवाद का नेतृत्व नहीं करने के आदेश दिए थे लेकिन मुखर्जी ने ये आदेश नहीं माने।आदेशों का उल्लंघन करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा कुछ माह बाद दिल का दौरा पड़ने से जेल में ही उनका निधन हो गया। इसके पश्चात भारतीय जनसंघ का नेतृत्व दीनदयाल उपाध्याय को मिला और कालांतर में यह अगली पीढ़ी के नेताओं  अटल बिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को मिला। हालाँकि, उपाध्याय सहित बड़े पैमाने पर पार्टी कार्यकर्ता आरएसएस के समर्थक थे।

कश्मीर आंदोलन के बावजूद 1952 में पहले लोकसभा चुनावों में जनसंघ को लोकसभा में मात्र तीन सीटें प्राप्त हुई। वो 1967 तक संसद में अल्पमत में रहे। इस समय तक पार्टी का एजेंडा कार्यसूची के मुख्य विषय सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून, गोहत्या पर प्रतिबंध लगाना और जम्मू एवं कश्मीर के लिए दिया विशेष दर्जा खत्म करना आदि थे। 1967 में पहली बार  देश के विभिन्न प्रदेशों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनसंघ , स्वतंत्र पार्टी और समाजवादियों सहित अन्य पार्टियों को कांग्रेस के खिलाफ जनादेश मिला और मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न हिन्दी भाषी राज्यों में वे गठबंधन की सरकार बनाने में सफल रहे।

जनता पार्टी (1977-1980) का उदय

1975 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया था। जनसंघ सहित प्रमुख विपक्षी दलों ने इसके विरूद्ध व्यापक विरोध आरम्भ कर दिया,जिससे देशभर में जनसंघ और अन्य दलों के हज़ारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। अंततोगत्वा 1977 में आपातकाल ख़त्म हुआ और देश में आम चुनाव हुए। इस चुनाव से पहले जनसंघ , भारतीय लोक दल,स्वतंत्र पार्टी, कांग्रेस (ओ) और समाजवादी पार्टी आदि दलों के एक साथ विलय कर एक नई पार्टी जनता पार्टी का निर्माण किया। इसका प्रमुख उद्देश्य चुनावों में कांग्रेस विशेष कर श्रीमती इंदिरा गांधी को हराना था। परिणाम स्वरुप 1977 के लोकसभा आम चुनाव में जनता पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली और गुजरात के मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केन्द्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। दिन दयाल उपाध्याय के 1979 में निधन के बाद भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष अटल बिहारी बाजपेयी बने थे । अतः उन्हें जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी और कार्यभार मिला। हालाँकि, कालांतर में जनता पार्टी के विभिन्न दलों में शक्ति साझा करने को लेकर विवाद बढ़ने लगे और ढ़ाई वर्ष बाद ही मोरार जी भाई देसाई को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा तथा जनता पार्टी गठबंधन के इस अल्प कार्यकाल के बाद देश में 1980 में आम चुनाव करवाने पड़े जिसमें इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पुनः भारी बहुमत से केन्द्र की सत्ता में लौट आई।

भाजपा की स्थापना (1980 से अब तक)

इस प्रकार जनता पार्टी के विघटन के बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)का गठन हुआ । यद्यपि तकनीकी रूप से यह जनसंघ का ही दूसरा रूप था और इसके अधिकतर कार्यकर्ता भी पूर्ववर्ती जनसंघ से ही थे । दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया। भाजपा अपने जनसंघ वाले पुराने एजेंडा  के साथ ही आगे बढ़ी लेकिन 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल दो लोकसभा सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। इसका बड़ा कारण चुनावों से कुछ समय पहले ही प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद उपजी जन सहानुभूति से कांग्रेस रिकार्ड सीटों के साथ लोकसभा चुनाव जीत गई।

बाबरी ढाँचा विध्वंस और हिन्दुत्व आन्दोलन

बाद में भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली उदारवादी रणनीति अभियान के असफल होने के बाद नए सिरे से पार्टी ने हिन्दुत्व और हिन्दू कट्टरवाद का पूर्ण कट्टरता के साथ पालन करने का निर्णय लिया। 1984 में लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया और उनके नेतृत्व में भाजपा राम जन्मभूमि आंदोलन की राजनीतिक आवाज़ बन कर उभरी। 1980 के दशक के पूर्वार्द्ध में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने अयोध्या में बाबरी ढांचा के स्थान पर भगवान श्री राम का मन्दिर निर्माण के उद्देश्य से एक अभियान की शुरूआत की थी । यहाँ मस्जिद का निर्माण मुग़ल बादशाह बाबर ने करवाया था और इस पर विवाद गहराया कि पहले यहाँ राम लल्ला का मन्दिर था। जिसे मुगल शासक बाबर ने ध्वस्त करवा यहां मस्जिद का ढांचा खड़ा कर दिया। भाजपा ने राम जन्म भूमि के इस अभियान का समर्थन आरम्भ कर दिया और इसे अपने चुनावी अभियान का हिस्सा भी बनाया। फलस्वरूप आंदोलन की ताकत के साथ भाजपा ने 1989 के लोक सभा चुनावों में 86 सीटें प्राप्त कर ली और समान विचारधारा वाली नेशनल फ्रंट की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार को अपना समर्थन प्रदान किया।तदोपरांत सितम्बर 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के समर्थन में अयोध्या के लिए  एक ऐतिहासिक "रथ यात्रा" आरम्भ की।इस  यात्रा के चलते हुए दंगो के कारण बिहार सरकार ने आडवाणी को गिरफ़तार कर लिया लेकिन कारसेवक और संघ परिवार कार्यकर्ता फिर भी अयोध्या पहुँच गये और बाबरी ढाँचे के विध्वंस के लिए जोरदार हमला कर दिया। इसके परिणामस्वरूप अर्द्धसैनिक बलों के साथ घमासान लड़ाई हुई जिसमें कई कार सेवक मारे गये। इस वजह से भाजपा ने विश्वनाथ प्रतापसिंह की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार गिरने के बाद एक बार फिर देश में लोकसभा के नये चुनाव हुए। इन चुनावों में भाजपा ने अपनी शक्ति को और बढ़ाया और 120 सीटों पर विजय प्राप्त की तथा उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी।

फिर वह दिन 6 दिसम्बर 1092 का आया जिस दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और इससे जुड़े संगठनों की विशाल रैली ने, जिसमें हजारों भाजपा और विहिप कार्यकर्ता भी शामिल थे, ने बावरी मस्जिद क्षेत्र पर जोरदार हमला बोल दिया।  यह रैली एक उन्मादी हमले के रूप मे बदल गई  और बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही इसका अंत हुआ।

इसके कई सप्ताह बाद देशभर में हिन्दू एवं मुस्लिमों में हिंसा भड़क उठी जिसमें 2000 से अधिक लोग मारे गये। विहिप को कुछ समय के लिए केन्द्र सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया और लालकृष्ण आडवाणी सहित विभिन्न भाजपा नेताओं को विध्वंस, उत्तेजक, भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया।

न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह लिब्रहान द्वारा लिखित 2009 की एक रपट के अनुसार बाबरी मस्जिद विध्वंस में मुख्यतः भाजपा नेताओं सहित 68 लोग दोषी माना गया। इनमें वाजपेयी, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी मुख्य रूप से  शामिल थे। मस्जिद विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की भी इस रिपोर्ट में कड़ी आलोचना की गई  तथा उनपर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ऐसे नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को अयोध्या में नियुक्त किया जो मस्जिद विध्वंस के समय चुप रहें।भारतीय पुलिस सेवा के कुछ अधिकारी और विध्वंस के दिन आडवाणी की तत्कालीन सचिव अंजु गुप्ता आयोग के सामने प्रमुख गवाह के रूप में आए। उनके अनुसार आडवाणी और जोशी ने उत्तेजक भाषण दिये जिससे भीड़ के व्यवहार पर प्रबल प्रभाव पड़ा।

1996 में एक बार पुनः लोकसभा के संसदीय चुनावों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर केन्द्रित राजनीति के कारण भाजपा को लोकसभा में 161 सीटें मिली  तथा भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी एवं अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ दिलाई गई लेकिन वो लोकसभा में बहुमत पाने में असफल रहे और केवल 13 दिन बाद ही उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा।

2001 में बंगारू लक्ष्मण भाजपा के नए अध्यक्ष बने  लेकिन उन्हें मीडिया द्वारा रक्षा मंत्रालय से सम्बंधित कुछ खरीददारी समझौतों के लिए ₹1,00,000 की घूस स्वीकार करते हुये सार्वजनिक रूप से दिखाए जाने पर भाजपा ने उन्हें पद छोड़ने को मजबूर किया और उसके बाद उन पर मुकदमा भी चला। अप्रैल 2012 में उन्हें चार वर्ष जेल की सजा भी सुनाई गई ।बाद में 1 मार्च 2014 को उनका निधन हो गया।

2002 के गुजरात दंगे

इस मध्य एक बड़ी घटना से देश सिहर उठा । 27 फ़रवरी 2002 को हिन्दू तीर्थयात्रियों [कारसेवकों] को ले जा रही एक रेलगाडी को गुजरात के गोधरा कस्बे के बाहर मुस्लिमों द्वारा कथित रूप से आग लगा दी गयी। यह रेलगाड़ी अयोध्या से आ रही थी । इस विभत्स कृत्य में 59 लोग मारे गये। इस घटना को हिन्दुओं पर हमले के रूप में देखा गया और इसने गुजरात राज्य में भारी मात्रा में मुस्लिम-विरोधी हिंसा को जन्म दे दिया जो कई सप्ताह तक चले। कुछ अनुमानों के अनुसार इसमें मरने वालों की संख्या 2000 तक पहुँच गई जबकि 150000 लोग विस्थापित हो गये। बलात्कार, अंगभंग और यातना के घटनायें बड़े पैमाने पर हुई।

गुजरात के तत्कालीन  मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और राज्य सरकार के उच्च-पदस्थ अधिकारियों पर हिंसा आरम्भ कराने और इसे जारी रखने के गंभीर आरोप भी लगे । वर्ष 2009 में सर्वोच्य न्यायालय ने गुजरात के दंगों  के मामले की जाँच करने और उसमें तेजी लाने के लिए एक विशेष जाँच दल (एसआईटी) गठित किया। सन् 2012 में  एसआईटी ने नरेन्द्र मोदी को दंगों में लिप्त नहीं होना पाया लेकिन भाजपा की विधायक माया कोडनानी को इसमें दोषी पाया गया  जोकि मोदी मंत्रिमण्डल में कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं। कोडनानी को इसके लिए 28 वर्ष की जेल की सजा सुनाई गई। 

2004 और 2009 के आम चुनावों में हार

अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 में लोकसभा आम चुनाव समय से छः माह पहले ही करवा दिए थे। इसके पीछे राजग के "इंडिया शाइनिंग" (उदय भारत) की सफलता की भुनाना रहा था।  लेकिन इस नारे के साथ शुरू हुआ  चुनाव अभियान तथा  राजग सरकार को देश में तेजी से आर्थिक बदलाव का श्रेय देने जैसे मुद्दों  को भुनाने में भाजपा सफल नहीं हो सकी तथा, राजग को इस आम चुनाव में अप्रत्याशित रुप  से हार का सामना करना पड़ा और लोकसभा में कांग्रेस के गठबंधन के 222 सीटों के सामने भाजपा को केवल 186 सीटों पर ही जीत मिली। उसके बाद कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के मुखिया के रूप में डॉ मनमोहन सिंह ने वाजपेयी का स्थान ग्रहण कर लिया और वे लगातार दो हार देश के प्रधानमंत्री रहे। इस आम चुनाव में राजग की असफलता का मुख्य कारण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने में उनका असफल होना और विभाजनकारी रणनीति को बताया गया लेकिन
मई 2008 में भाजपा ने दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की। यह पहला मौका था जब पार्टी ने किसी दक्षिण भारतीय राज्य में चुनावी जीत दर्ज की थी।
हालाँकि, इसने 2013 में अगले विधानसभा चुनावों में इसे खो भी दिया। साथ ही 2009 के आम चुनावों में भाजपा की लोकसभा में भी क्षमता घटते हुये 116 सीटों तक सीमित होकर  रह गई।

2014 के आम चुनावों में जीत

2014  के आम चुनावों में भाजपा ने नरेन्द्र मोदी नेता की आगे कर लोकसभा आम चुनाव में आक्रामक रवैया अपनाया था राजग के कथित भ्रष्टाचारों की जनता के सामने उजागर किया। फलस्वरूप इस आम चुनाव में भाजपा ने  282 सीटों पर जीत प्राप्त की और इसके नेतृत्व वाले राजग को 543 लोकसभा सीटों में से 336 सीटों पर अभूतपूर्व जीत प्राप्त हुई। यह 1984 के बाद पहली बार था कि भारतीय संसद में किसी एक दल को लोकसभा में पूर्ण बहुमत मिला।भाजपा संसदीय दल ने  नरेन्द्र मोदी को अपना नया नेता चुना और 26 मई 2014 को मोदी ने राष्ट्रपति भवन के खुले प्रांगण में भारत के 15वें प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ ली।

2019 के आम चुनावों में भी मिली प्रचण्ड जीत

नरेन्द्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व में भाजपा नीत एन डी ए सरकार की उल्लेखनीय उपलब्धियों के कारण 2019 के आम चुनावों में भी भाजपा ने 303 सीटों पर प्रचण्द जीत प्राप्त की और इसके नेतृत्व वाले राजग को 543 लोकसभा सीटों में से 352 सीटों पर जीत प्राप्त हुई। उस कार्यकाल के नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता उर वैश्विक नेता की जबर्दस्त छवि उभरी।

2024 के आम चुनावों में लगा धक्का

पिछले वर्ष 2024 के लोकसभा आम चुनावों में भाजपा को 240 लोकसभा सीटों पर ही विजय मिल सकी । इस  कारण भाजपा को अपने बलबुते पर केन्द्र में सरकार नहीं बना पाने का एक धक्का लगा लेकिन भाजपा ने अपने राजग सहयोगियों की मदद से एक बार फिर से नरेन्द्र  मोदी नेके नेतृत्व में लगातार तीसरी बार केन्द्र  में अपनी सरकार बना ली और मोदी ने लगातार तीसरी बार भारत का प्रधानमंत्री बनने में सफलता हासिल की।

इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी का अश्वमेध रथ
भाजपा के कुनबे को 25  करोड़ सदस्यों तक पहुंचाने के अपने लक्ष्य की ओर  बढ़ता जा रहा हैं।


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