उदयपुर – जनार्दन राय नागर विद्यापीठ विश्वविद्यालय एवं साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय मीरां महोत्सव का समापन हुआ। कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि मीरा सहजता और समर्पण का अद्भुत समन्वय थीं, जिनके भगवत प्रेम ने समाज में चेतना जागृत की।
प्रो. सारंगदेवोत ने विद्यापीठ के प्रतापनगर परिसर में भव्य मीरा भवन एवं मीरा की आदमकद प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की और मूर्ति के लिए एक लाख रुपये देने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि यह भवन युवा पीढ़ी के लिए शोध एवं प्रेरणा का केंद्र बनेगा।
मुख्य अतिथि पूर्व कुलाधिपति प्रो. बलवंत राय जानी ने कहा कि मीरा के संवाद में शास्त्रों की गहराई निहित है। उन्होंने मीरा को नारी शक्ति का प्रतीक बताते हुए उनके बहुभाषिक एवं बहुसांस्कृतिक व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम समन्वयक प्रो. प्रदीप त्रिखा ने बताया कि इस महोत्सव में देशभर के विद्वान, लेखक एवं समीक्षक शामिल हुए। अंतिम दिन प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने मीरा बाई की भारत यात्रा के संभावित पदमार्ग पर शोधपत्र प्रस्तुत किया, जबकि कश्मीर से आए रऊफ अहमद आदिल ने मीरा और भक्त कवयित्री लल्लेश्वरी पर तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया।
महोत्सव में मीरा की रचनाओं, साहित्यिक विरासत एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर गहन विमर्श हुआ। समापन सत्र में प्रतिभागियों को उपरणा, स्मृति चिन्ह एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर विजय बहादुर सिंह, प्रो. कल्याणसिंह शेखावत, डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश, बसंतीलाल सोलंकी, प्रो. मंजू चतुर्वेदी, डॉ. रचना राठौड़, डॉ. संतोष लांबा, डॉ. किर्ति चूंडावत, डॉ. हिम्मत सिंह चूंडावत सहित गणमान्य विद्वान एवं शोधार्थी उपस्थित थे। संचालन डॉ. हरीश चौबीसा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो. माधव हाड़ा ने किया।