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प्रियंका गाँधी ने लोकसभा में दिये अपने पहले संसदीय भाषण से किया प्रभावित

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14 Dec 24
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गोपेन्द्र नाथ भट्ट

प्रियंका गाँधी ने लोकसभा में दिये अपने पहले संसदीय भाषण से किया प्रभावित

लोकसभा में वर्षों बाद दिवंगत प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी की झलक देखने को मिली। संविधान लागू होने के अमृत वर्ष के उपलक्ष्य में संसद में भारत के संविधान की ‘75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा' पर चर्चा में प्रतिपक्ष की ओर से चर्चा की शुरुआत करते हुए दक्षिण भारत के खूबसूरत प्रदेश केरल के वायनाड से जीतकर संसद पहुंचीं प्रियंका गांधी ने शुक्रवार को लोकसभा में अपने संसदीय जीवन का पहला भाषण दिया। प्रियंका गाँधीं ने अपने इस डेब्यू स्पीच से सभी को प्रभावित किया। 

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी लोकसभा में शुक्रवार को ज़बर्दस्त दहाड़ी और उन्होंने कई ऐसे मुद्दे उठाए, जिन्हें उनके भाई और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी लंबे समय से उठाते रहे हैं। प्रियंका ने कहा कि आज संसद में बैठे हुए सत्ता पक्ष के मेरे साथी ज्यादा-से ज्यादा अतीत की बातें करते हैं। नेहरू जी ने क्या किया.. ? आदि बातें करते हैं । वर्तमान की बात करिए। देश को बताइए कि आज आप क्या कर रहे हैं,आपकी क्या जिम्मेदारी है? क्या सारी जिम्मेदारी जवाहरलाल नेहरू की है। प्रियंका ने कहा, जब राजनीतिक न्याय की बात होती है तो हमारे सत्ता पक्ष के लोग 1975 की बात करते हैं। सीख लीजिए आप भी। आप भी अपनी गलती के लिए माफी मांग लीजिए। आप भी बैलेट पर चुनाव करवा लीजिए। दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। आप पैसे के बल पर सरकारों को गिरा देते हैं। सत्तापक्ष के साथी ने एक उदाहरण दिया, यूपी की सरकार का। मैं भी उदाहरण दे देती हूं महाराष्ट्र की सरकार का,गोवा की सरकार और हिमाचल आदि सरकारों का । क्या ये सरकारें जनता ने नहीं चुनी थी। देश की जनता जानती है कि उनके पास वॉशिंग मशीन है। यहां से वहां जो जाता है,वह धुल जाता है। इस तरफ दाग, उस तरफ स्वच्छता। मेरे कई साथी हैं जो इस तरफ थे और उस तरफ चले गए। वॉशिंग मशीन में धुल गए हैं।आज जो भय का वातावरण चारों ओर देखा जा रहा हैं वैसा आजादी के बाद पहले कभी नहीं देखा गया।

प्रियंका गांधी ने अपने भाषण में संविधान की अवेहलना, जातिगत जनगणना, मणिपुर हिंसा उन्नाव की रेप पीड़िता और  आगरा के अरुण वाल्मीकि के साथ संभल की घटनाओं का जिक्र भी किया। साथ ही उद्योगपति गौतम अड़ानी आदि से जुड़ें मुद्दों के जरिए राहुल गांधी के एजेण्डे पर ही चलने का संकेत दिया। प्रियंका गाँधी के पहले भाषण को देखकर राजनीतिक एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि यह तो अभी ट्रेलर है और आने वाले समय में भी प्रियंका इसी तरह के मुद्दों के जरिए भाजपानीत एनडीए  सरकार पर हमला करती रहेंगी। प्रियंका गाँधी वैसे तो राजनीति में एकदम नई नहीं हैं। वह दशकों से पहले अपनी मां सोनिया गाँधी और फिर भाई राहुल गाँधी के चुनावी अभियान में सक्रिय रूप से भाग लेती रही हैं, लेकिन इस बार उन्होंने स्वयं पहली बार लोकसभा उप चुनाव लड़ कर वायनाड से बड़ी जीत दर्ज की हैं। इस सीट पर पिछले दो बार से राहुल गांधी जीतते आ रहे थे।

प्रियंका गाँधी ने शुक्रवार को संसद में संविधान और अडानी के मुद्दे पर बीजेपी को जमकर घेरा। उन्होंने सरकार पर भय फैलाने का आरोप लगाया और कटाक्ष करते हुए कहा कि शायद प्रधानमंत्री यह समझ नहीं पाए हैं कि संविधान 'संघ का विधान' नहीं है। प्रियंका ने कहा, हमने हमारे संविधान की जोत को जलते हुए देखा है औऱ यह भी समझा है कि यह एक सुरक्षा कवच है। एक ऐसा सुरक्षा कवच जो देशवासियों को सुरक्षित रखता है। यह अभिव्यक्ति की आजादी का कवच है। दुख की बात यह है कि हमारे सत्ता पक्ष के साथी जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं उन्होंने 10 सालों में इस कवच को तोड़ने का पूरा प्रयास किया। संविधान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का वादा है। यह वादा एक सुरक्षा कवच है। जिसको तोड़ने का काम शुरू हो चुका है। लैटरल एंट्री औऱ निजीकरण के जरिए यह सरकार आरक्षण को कमजोर करने का काम कर रही है। प्रियंका गांधी ने सरकार पर जमकर निशाना साधा कि अगर लोकसभा चुनाव के नतीजे इस बार की तरह ना होते तो ये लोग संविधान को भी बदलने को तैयार थे। आज सत्तापक्ष बार-बार संविधान इसलिए कह रहा है, क्योंकि इस चुनाव में हारते-हारते जीतने के बाद उन्हें पता चल गया कि देश की जनता ही संविधान को सुरक्षित रखेगी और संविधान बदलने की बात इस देश में नहीं चलेगी।

प्रियंका गाँधी ने अपने भाई राहुल गाँधी की तरह अपने पहले ही भाषण में कहा कि, ''देश देख रहा है कि किस तरह एक व्यक्ति को बचाने के लिए देश की जनता को नकारा जा रहा है। सारे बिजनेस, सारे संसाधन, सारी दौलत, सारे मौके एक ही व्यक्ति को सौपें जा रहे हैं। देश का बंदरगाह, पोर्ट, एयरपोर्ट, सड़कें, रेलवे, सरकारी कंपनियां सिर्फ एक ही व्यक्ति को दी जा रही हैं। आज आम लोगों के बीच यह धारणा बनती चली जा रही है कि सरकार सिर्फ अडानी के मुनाफे के लिए चल रही है। उन्होंने कहा कृषि कानून भी उद्योगपतियों के लिए बन रहे हैं। डीएपी तक नहीं मिल रहा है।हिमाचल में सेब के किसान रो रहे हैं क्योंकि एक व्यक्ति के लिए सबकुछ बदला जा रहा है। उन्होंने कहा, अडानी जी को सारे कोल्ड स्टोरेज आपकी सरकार ने दिए हैं। देश देख रहा है कि एक व्यक्ति को बचाने के लिए देश की 142 करोड़ जनता को नकारा जा रहा है।

प्रियंका ने अपने भाषण में मणिपुर हिंसा का जिक्र करते हुए कहा कि राहुल गांधी ने खुद वहां का दौरा किया और पीड़ितों से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि  जहां भाई-चारा और अपनापन होता था, वहां घृणा और शक के बीज बोए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री सदन में संविधान को माथे पर लगाते हैं, लेकिन जब संभल, हाथरस और मणिपुर में न्याय की गुहार उठती है तो उनके माथे पर शिकन नहीं आती। राहुल गाँधी की जिस मोहब्बत की दुकान पर सरकार के लोगों को हंसी आती है,उसके साथ देश के करोड़ों लोग चले हैं।उन्होंने पीएम मोदी पर भी तंज कसते हुए कहा कि आज के राजा भेष बदलना तो जानते हैं लेकिन उनमें जनता के बीच जाने और आलोचना सुनने की हिम्मत नहीं है।

प्रियंका ने कहा कि आजादी की लड़ाई बेहद लोकतांत्रिक थी। इसमें देश के मजदूर, किसान अधिवक्ता, बुद्धजीवी, हर जाती, धर्म औऱ हर भाषा को बोलने वाले सब इस संग्राम में शामिल हुए। सबने आजादी की लड़ाई लड़ी। उसी आजादी की लड़ाई से एक आवाज उभरी। वह देश की आवाज थी और वही आवाज आज हमारा संविधान है। आजादी की गूंज में हमारा संविधान बनाया गया। यह सिर्फ दस्तावेज नहीं है। राजगोपालाचारी जी, डॉ. भीमराव आंबेडकर और जवाहरलाल नेहरू जी और उस समय के तमाम नेता इस संविधान को बनाने में सालों जुटे रहे। उन्होंने कहा, हमारा संविधान इंसाफ, उम्मीद अभिव्यक्ति की ज्योत है जो हर हिंदुस्तानी के दिल में जलती है। इस जोत ने हर भारतीय को यह पहचानने की शक्ति दी कि उसे न्याय मिलने का अधिकार है। उसमें अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की क्षमता है। वह जब आवाज उठाएगा तो सत्ता को उसके सामने झुकना पड़ेगा। इस संविधान ने सबको अधिकार दिया कि वह सरकार बदल सकता है। हर हिंदुस्तानी को विश्वास दिया कि देश के संसाधनों में उसका भी हिस्सा है। उसे एक सुरक्षित भविष्य का अधिकार है। देश बनाने में उसकी भागेदारी है। उम्मीद और आशा की यह जोत मैंने देश के कोने-कोने में देखी है।
उन्होंने कहा कि वाद विवाद की हमारी पुरानी संस्कृति रही है। इसी परंपरा से उभरा हमारा स्वतंत्रता संग्राम। हमारा स्वतंत्रता संग्राम विश्व में एक अनोखा संग्राम था। यह एक अनोखी लड़ाई थी जो अहिंसा और सत्य पर आधारित थी। आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले नेताओं का नाम पुस्तकों और भाषणों से मिटाया जा सकता है लेकिन उनकी आजादी और देश के निर्माण में भूमिका को मिटाया नहीं जा सकता।

देश की जनता को हमारी सरकार पर यह भरोसा था कि नीतियां लोगों के हित के लिए ही बनेंगी। इंदिरा जी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करवाया। खजाने का राष्ट्रीयकरण करवाया। कांग्रेस की सरकार में लोगों को शिक्षा रोजगार और भोजन का अधिकार आदि कई अधिकार मिले। पहले संसद चलती थी तो लोगों को उम्मीद होती थी कि सरकार बेरोजगारी और महंगाई का कोई रास्ता निकालेगी। लोग मानते थे कि कोई नीति भारतीय बाजार को मजबूत बनाने के लिए बनेगी। हमारे संविधान ने महिलाओं को अधिकार दिया। आज आपको पहचानना पड़ रहा है कि नारी शक्ति के बिना ये सरकारें नहीं बन सकती हैं।प्रियंका गांधी ने कहा, नारी शक्ति का अधिनियम आप लागू क्यों नहीं कर रहें । क्या आज की नारी 10 साल तक इंतजार करेगी। 

प्रियंका ने कहा कि करोड़ों देशवासियों के दिल में एक दूसरे के लिए प्रेम है, घृणा नहीं है लेकिन इनकी विभाजनकारी नीतियों का नतीजा हम रोज देखते हैं। राजनीतिक फायदे के लिए इन्होंने संविधान को छोड़िए देश की एकता को भी दांव पर लगा देते हैं लेकिन हमारा संविधान कहता है कि यह देश एक है और एक रहेगा।आजादी के 75 सालों में संविधान की जोत कभी धीमी नहीं हुई। जनता ने निडर होकर प्रदर्शन किए। जब जनता नाराज हुई तो सत्ता को ललकारा। बड़े से बड़े नेताओं को कटघरे में खड़े किया। चाय की दुकानों में, घरों में गलियों में चर्चा कभी बंद नहीं हुई लेकिन आज यह माहौल नहीं है। आज जनता को सच बोलने से रोका जाता है। पत्रकार हो या विपक्ष के नेता, सब का मुंह बंद करवाया जाता है।ऐसा डर का माहौल अंग्रेजों के समय की सरकार में ही था।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रियंका गाँधी का संसद में दिया गया तह भाषण काफी प्रभावशाली था तभी राहुल गाँधी ने भी कहा कि मेरे संसद में पहले भाषण से कही अधिक अच्छा था बहन का भाषण लेकिन राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि इसे ओर धारदार बनाया जा सकता था। विशेष कर दो दिन की चर्चा के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिये जाने वाले जवाब का पूर्वानुमान करते हुए उसमें जिन सटीक बातों को शामिल किया जाना चाहिये था लेकिन उसका अभाव दिखा जैसे इन्दिरा गाँधी द्वारा लगाये गये आपातकाल पर सत्ता पक्ष के हमलावर होने तथा विपक्ष की सरकारों को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करने आदि की कोई काट भाषणों में शामिल नहीं दिखी जबकि सत्ता पक्ष में बैठें कई नेताओं ने बाद में आपातकाल को अनुशासन पर्व और बीस सूत्री कार्यकमों को समय की जरूरत बताया था।
देखना है संविधान पर संसद मे हो रही इस चर्चा में  लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गाँधीं और राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खरगे तथा प्रतिपक्ष के अन्य नेता गण केन्द्र प्रधानमंत्री और केन्द्र सरकार पर और कितने अधिक बाउंसर फेकते हैं तथा अपनी बारी आने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इसके जवाब में पहले की तरह प्रतिपक्ष के विकेटों की बल्लियाँ उखेड़ने में कितने अधिक सफल रहते हैं?


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