(mohsina bano)
जयपुर : ग्रामीण भारत की महिलाएँ हमेशा से परिवार, कृषि और संस्कृति की धुरी रही हैं। हालाँकि, उनकी व्यक्तिगत आकांक्षाएँ अक्सर पीछे छूट जाती थीं। 'शक्ति से प्रगति' पहल के माध्यम से अब ये महिलाएँ अपनी क्षमता पहचानकर नए आयाम स्थापित कर रही हैं, जिससे समाज में व्यापक परिवर्तन हो रहा है।
वाटिका गाँव की 52 वर्षीय सुनीता सैन ने नंद घर दीदी के रूप में बच्चों को शिक्षा दी, लेकिन अपनी अधूरी पढ़ाई का सपना संजोए रखा। आर्थिक तंगी और कम उम्र में विवाह के कारण पढ़ाई छोड़ने वाली सुनीता ने अपनी बेटी से प्रेरित होकर पुनः शिक्षा प्रारंभ की और 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।
इसी प्रकार, जयपुर के जलसू ब्लॉक में तेरह महिलाओं के समूह ने मोमबत्ती निर्माण का कौशल सीखा। घर के कार्यों के बाद रात में मोमबत्तियाँ बनाकर उन्होंने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया। नंद घर के सहयोग से उनकी उत्पादित मोमबत्तियाँ दिल्ली हाट और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल जैसे प्रतिष्ठित मंचों तक पहुँचीं। समूह की सदस्य गुलाब जी ने अपनी बहुओं को भी इस पहल से जोड़ा, जिससे उनके परिवार में आर्थिक समृद्धि आई।
राजस्थान के असालपुर में महिलाएँ कृषि क्षेत्र में क्रांति ला रही हैं। परंपरागत रूप से पुरुषों के अधीन माने जाने वाले कार्यों में उन्होंने ट्रैक्टर चलाना सीखा, ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किए और परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियों में समान भागीदारी निभाई।
अनिल अग्रवाल फाउंडेशन की पहल नंद घर ने 7,500 से अधिक केंद्र स्थापित किए हैं, जो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में सहायता प्रदान कर रहे हैं। ये केंद्र कौशल विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा रहे हैं, जिससे वे स्वतंत्र निर्णय ले सकें और नेतृत्व कर सकें।
इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, हमें इन महिलाओं की कहानियों से प्रेरणा लेते हुए एक समावेशी और सशक्त भारत के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, जहाँ महिलाएँ न केवल आगे बढ़ें, बल्कि परिवर्तन की अग्रदूत बनें।