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संस्कार और मूल्यों से ही समाज में निभाई जा सकती है सशक्त भूमिका : प्रो. सारंगदेवोत

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28 Apr 25
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संस्कार और मूल्यों से ही समाज में निभाई जा सकती है सशक्त भूमिका : प्रो. सारंगदेवोत

उदयपुर, सीमित परिवारवाद के संस्कारों में पले-बढ़े व्यक्ति का समाज में विशिष्ट स्थान होता है। यदि व्यक्ति के भीतर सही समझ का विकास हो जाए तो सहयोग, श्रद्धा और समर्पण की पूर्ण समरसता समाज में स्थापित की जा सकती है। इसी चिंतन को आधार बनाते हुए जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी) के प्रबंध अध्ययन संकाय में एआईसीटीई द्वारा स्वीकृत 'सार्वभौमिक मानवीय मूल्य आधारित शिक्षा' विषयक संकाय विकास कार्यक्रम के तीसरे दिवस के सत्रों का सफलतापूर्वक समापन हुआ।

 


समारोह में मुख्य वक्ता, जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद् राजेन्द्र सिंह ने कहा कि विद्यार्थियों के गुणों को निखारने का सबसे प्रभावी माध्यम शिक्षक होता है। उन्होंने बल दिया कि मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना तथा भारतीय विद्या को वास्तविक स्वरूप में जीवंत करना आज के शिक्षा क्षेत्र का अनिवार्य ध्येय होना चाहिए। विद्या और शिक्षा का समन्वय स्वयं ही संस्कारों और मूल्यों का विकास करता है। उन्होंने नवाचार और संकल्प की दिशा में शिक्षकों की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया और कहा कि समय की मांग है कि नवीन विचारों को सही दिशा में क्रियान्वित किया जाए।

कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने अपने उद्बोधन में कहा कि 'सुबह का आकलन' यानी दिन की शुरुआत आत्मविश्लेषण और गंभीर चिंतन के साथ करना अत्यंत आवश्यक है। स्नेह, श्रद्धा और विश्वास परस्पर संबंधों की रीढ़ हैं। शिक्षक का कर्तव्य है कि वह ज्ञान की प्रकृति को पहचानते हुए निरंतर सीखने की भावना बनाए रखे। उन्होंने कहा कि ज्ञान चेतना का विस्तार ही शिक्षक की वास्तविक जिम्मेदारी है और ऐसे आयोजन उनके लिए उत्कृष्ट सीखने के अवसर प्रदान करते हैं।

आरआईइटी, जयपुर से एआईसीटीई प्रतिनिधि के रूप में प्रशिक्षक डॉ. बीके शर्मा ने कहा कि आज संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद उनका उचित उपयोग न होना गहरी चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, "स्व में संयम का भाव विकसित होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि वही व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को भलीभांति समझ सकता है।"

बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय से प्रशिक्षक डॉ. अलका स्वामी ने विश्वास को संबंधों का मूल आधार बताया। उन्होंने कहा, "हर संबंध की नींव विश्वास पर आधारित होती है, और यही प्रेम का भी मूल है।" उन्होंने सहज स्वीकृति, पवित्र मनोभाव तथा राष्ट्र के अनुरूप विकसित इच्छाओं को आंतरिक विकास के लिए आवश्यक बताया।
पर्यवेक्षक डॉ. सरोज लखावत ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. चंद्रेश छतलानी ने किया। इस अवसर पर कोटा विश्वविद्यालय से अनीता सुखवाल तथा राजस्थान विद्यापीठ से डॉ. हीना खान ने तीन दिवसीय प्रशिक्षण के अनुभव साझा किए। उन्होंने संयम की भावना के विकास और आज के समय में विद्यार्थियों में संस्कारों के क्षरण के कारणों एवं उनके समाधान पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जो प्रबंध अध्ययन संकाय की कार्यक्रम संयोजक डॉ. नीरू राठौड़ ने प्रस्तुत किया।

प्रस्तुति : क्रिएटिव न्यूज।

 


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