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दिल की गहराई को छू लेती हैं डॉ.वैदेही गौतम की रचनाएं....

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09 Sep 24
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा

दिल की गहराई को छू लेती हैं डॉ.वैदेही गौतम की रचनाएं....

हार- जीत

पुनः पुनः हार का 

रसास्वादन

जीत की और

अग्रसर करे

पुनः पुनः जीत का

रसास्वादन

हार में हिम्मत धरे

जीत में हार को न भूलूँ

हार में जीत को टटोलूं

आज की हार भी

कल जीत के हार पहनाएगी

समरसता जन्य आनंदवाद से

जीवन नैया तर जायेगी

हार भी जीत में बदल जायेगी

 कवियित्री के शब्दोंं का ही जादू और सम्मोहन  दिल को गहराई तक छू जाता है।  ऐसी ही भावपूर्ण रचनाएं "न जा तू परदेश"रचना में नायिका अपने प्रीतम को अपने पास रखने के लिए कई तरह के जतन करती नजर आती है, "अंधों की सरकार"में आज के राजनैतिक माहौल पर कटाक्ष किया गया है,"प्रदूषण फैलाता इंसान"में आज के स्वार्थ वादी इंसान को दिखाया गया है, "स्त्री होना पाप है क्या ?" कविता में स्त्री ओ! निराशा, तू बता क्या चाहती है? मैं कठिन तूफान कितने का हर किसी से यही सवाल है कि स्त्री होना पाप होता है क्या ? ऐसे ही कई विषयों को लेखनी का माध्यम बना कर समाज में व्याप्त बुराईयों को उजागर करके आदर्श समाज की परिकल्पना कर आशावादी दृष्टिकोण का संदेश देना डॉ. वैदेही गौतम के सृजन का मूल उद्देश्य है। साथ ही इनकी रचनाएं व्यक्ति के व्यक्तित्व का चित्रण करके उसकी अच्छाइयों को उजागर करती है ताकि सकारात्मक सोच के माध्यम से समाज उन्नति व प्रगति कर सके। इनका लेखन  समाज की यथार्थता व समसामयिक परिस्थिति को उजागर करता प्रतीत होता है।

       यह गद्य और पद्य दोनों  विधाओं में लिखती है। कविताओं, गीत और मुक्तकों में मनोवैज्ञानिक शैली का उपयोग कर मौलिक व स्वतंत्र लेखन से समाज में उन्नति, प्रगति, सकारात्मकता व प्रेम का संदेश देती है। इनकी रचनाएं मनुष्य को विषम परिस्थितियों में आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए सतत गतिमान रहने के लिए प्रेरित करती हैं। गद्य विधा में ये अपने उद्देश के अनुरूप विचारात्मक व भावात्मक शैली में लेखन करती हैं। हिंदी भाषा को ही इन्होंने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है। इनका  काव्य सृजन श्रृंगार रस और वीर रस से ओतप्रोत है। इनका साहित्य भक्तिकालीन कवि गोस्वामी तुलसीदास जी के  "रामचरितमानस " को आदर्श मानकर लिखा गया है। इनकी रचनाएं मनोवैज्ञानिक कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" व धर्मवीर भारती से प्रभावित काव्य रचनाएँ हैं। मन की शांति का अनुभव करना लेखन का मर्म है।

       स्वार्थी और दिखावटी प्रेम करने वालों की दुनिया में  " ओ मेरे कान्हा " काव्य में कवयित्री ने निश्छल प्रेम के प्रतीक कृष्ण को सर्वस्व अर्पण करते हुए लिखा है ............

 

ओ मेरे कान्हा, तुम्ही को अपना माना, 

तुम्ही हो मेरे मन में, तुमने मन को जाना, 

तुम्हे किया सर्वस्व अर्पण, तुमसे क्या छिपाना,

जैसे मुझे तुम प्यारे हो, वैसे ही तुम्हे मै प्यारी हूँ,

प्रेम का कोई मोल नहीं, अनमोल प्रेम को करना और कराना,

प्रेम से ही होता है, ओ मेरे कान्हा, तुम्ही को अपना माना....... 

तेरी भक्ति से शक्ति मिली, शक्ति से तुष्टी मिली,

तुष्टी से पुष्टि मिली, पुष्टि से संतुष्टि मिली, ओ मेरे कान्हा.......

 

       "ओ मेरे प्रियतम, तुम हो मेरे ह्रदय की धड़कन, तुमको ढूंढा करते हरपल मेरे दो नयन" कविता में अपनें प्रियतम पर सर्वस्व न्यौछावर करने वाली नायिका का समर्पण भाव प्रदर्शित हुआ है। "प्रकृति पौरुष में तल्लीन" काव्य में प्रकृति व पौरुष के बीच मनमुटाव व अहम् का भाव आने पर निश्छल प्रेम गौण हो जाता है, ऐसी परिस्थितियों में प्रकृति रूपी नारी को दृढ़ निश्चयी व समरसता जन्म आनंदवाद की दात्री माना है, जो संधि पत्र लिखने की पहल करती है। "संधि पत्र" काव्य में " अन्तरात्मा का आर्तनाद, भरता मन में अति विषाद, करुणा से सजल अश्रु पात, करते प्रकृति में जल प्रपात, सरल सहज मन आत्मलीन का भावपूर्ण सृजन है। देखिए इस काव्य सृजन की बानगी.......

 

अन्तरात्मा का आर्तनाद, भरता मन में अति विषाद

करूणा से सजल अश्रुपात, करते प्रकृति में जलप्रपात

सरल सहज मन आत्मलीन प्रकृति पौरुष में तल्लीन

समष्टि- व्यष्टि में आत्मसात,जड़ चेतन का है एकनाद

समरसता जन्य आनंद वाद,कामायनी का यही सार

जन मन में भरता अति उल्लास,सहसा आया झंझावात

किसने किया वज्रपात,मनु श्रद्धा बीच इडा आयी

पुरुष प्रकृति में वह समाई,अहंकार नें विजय पायी

फिर भी नारी न डगमगाई,नारी तुम केवल श्रद्धा हो

समग्र सृष्टि के नभतल में,पीयूष स्रोत सी बहा करो

जीवन के सुन्दर समतल में,अश्रु से भीगे अंचल पर 

सर्वस्व समर्पण करना होगा,तुमको अपनी स्मित रेखा से

यह संधि पत्र लिखना होगा.... यह संधि पत्र  लिखना होगा.... 

          विद्या और संगीत की देवी माँ सरस्वती की असीम कृपा से इनकी वाणी को ओज और माधुर्य मिला । वाणी मधुर होने से जो भी मिलते हैं वे कविता , गीत  सुनने के इच्छुक होते हैं।   मन के गत्यात्मक पक्ष इदम् , अहम् , पराहम्  के आधार पर व्यक्ति के व्यक्तित्व का आप बखूबी विश्लेषण करने में दक्ष हैं। अपने समीपस्थ का चित्रण किया जिसमें तारुणी , आत्माभिव्यक्ति : उड़ान, मेरे बाबा, तुषार, शशांक, अक्षिता, सासु माँ, पुरषोत्तम आदि काव्य रचनाएँ प्रमुख हैं। इन्होंने अन्तर्मन में उत्पन्न उथल-‌ पुथल, कुंठा द्वंद्व आदि मनोविकार को लेखनी के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की। 

पुरस्कार :

आपको अनेक संस्थाओं द्वारा समय - समय पर पुरस्कृत और सम्मानित किया गया। रोटरी क्लब कोटा द्वारा " श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान ",लायंस क्लब कोटा द्वारा " श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान ", संस्था प्रधान वाकपीठ खैराबाद, कोटा द्वारा " शिक्षा सेवा सम्मान ", सेवा भारती रामगंजमंडी द्वारा" शाला गौरव सम्मान ," राजस्थान पत्रिका के स्थापना दिवस पर रोटरी क्लब कोटा, राउंड टाउन द्वारा "नारी शक्ति सम्मान", समरस संस्थान साहित्य सृजन, भारत, गांधीनगर गुजरात द्वारा" समरस श्री काव्य शिरोमणि सम्मान ", संभाग स्तरीय हिन्दी दिवस सम्मेलन , राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय, कोटा द्वारा" हिन्दी सेवी सम्मान ", जिला शिक्षा अधिकारी ( मुख्यालय) कोटा "शिक्षा सेवा उत्कृष्ट कार्य सम्मान", साहित्य मण्डल नाथद्वारा " साहित्य सौरभ सम्मान ",  एवं रंगीतिका ( रंग, कला- साहित्य समर्पित संस्था) कोटा द्वारा शिव प्रसाद शर्मा स्मृति" काव्य रत्न सम्मान " से आपको नवाजा गया है।

 परिचय :

सशक्त अभिव्यक्ति से अपनी रचनाओं में आशावादी भावनाएं जगाने के वाली रचनाकार डॉ.वैदेही गौतम का जन्म कोटा में 16 अगस्त 1975 को पिता मोहनलाल गौतम एवं माता शकुन्तला गौतम  के आंगन में हुआ। आपने हिंदी साहित्य में एमए तथा शिक्षा में एमएड की शिक्षा प्राप्त कर "धर्मवीर भारती के साहित्य में मनोवैज्ञानिकता" विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इनके पिता इनके आदर्श रहे को मनोविज्ञान के प्रोफेसर थे। उनकी प्रेरणा एवं निर्देशन में  शोधग्रंथ का विषय "मनोविज्ञान" चुना । परिणय सूत्र में बंधने के पश्चात रिश्तों का मूल्य समझ में आया , दुनियादारी की समझ ने लोगों की पहचान कराई, व्यवहार, चेतना और मन को साथ लेकर चलने वाले विज्ञान में रुचि बढने लगी ।  व्यक्ति के चेतन, अवचेतन  और अर्द्धचेतन मन‌ की परतों को खोलते-खोलते विविध प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया। अनेक शोध पत्रिकाओं में आपके आलेख प्रकाशित हुए हैं। 

साहित्य मंडल, श्रीनाथ द्वारा "साहित्य सौरभ सम्मान" सहित अनेक संस्थाओं द्वारा आपको पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है। आप कई साहित्यिक मंचों से जुड़ी हैं और काव्यपाठ करती हैं। वर्तमान में ये  कोटा के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य पद पर सेवारत हैं और निरंतर साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।

संपर्क :

96- बी वल्लभ नगर, कोटा (राजस्थान)

मोबाइल : 94142 60924


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