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पुस्तक अभिमत  राजस्थान के साहित्य साधक  सुखद ही रहा इस प्रस्तुति से गुजरना 

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19 Apr 25
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पुस्तक अभिमत   राजस्थान के साहित्य साधक  सुखद ही रहा इस प्रस्तुति से गुजरना 

जाने-माने कवि, संस्कृति-कर्मी, कला समीक्षक, यात्रा वृत्तांतकार डॉ॰ राजेश कुमार व्यास के मुताबिक “पुस्तक अर्थगर्भित शब्द है, जन-जन के आलोक से जुड़ा। सभ्यताओं और संस्कृति के इतिहास को अपने में समाते हुए इसने मनुष्य को भविष्य की उज्ज्वल राहों की ओर ही अग्रसर किया। उसने अपने आपको पहचानते हुए मानवीय संस्कारों के सूत्र भी प्रदान किए हैं।“ (पुस्तक संस्कृति, मार्च-अप्रेल 2024) 
          वस्तुतः मेरे सन्मुख है अभी-अभी विमोचित ग्रंथ सरीखी एक पुस्तक ‘राजस्थान के साहित्य साधक’। साहित्यागार, जयपुर से प्रकाशित 380 से अधिक पृष्ठों पर अपनी आभा बिखेरती इस प्रस्तुति के प्रणेता हैं, बहुमुखी सृजनात्मकता के धनी डॉ॰ प्रभात कुमार सिंघल, जिनसे मेरी पहली भेंट हुई थी ‘राष्ट्रीय संपूर्ण साक्षारता अभियान’ (1999) के दौर में। सूचना एवं जन-संपर्क विभाग, राजस्थान के संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त डॉ॰ सिंघल ने एक महत्वाकांक्षी सोच के साथ बीड़ा उठाया और प्रतिफल स्वरूप पाठकों के बीच पहुँच गई एक ऐसी कृति जो राजस्थान के वासी-प्रवासी सृजनशील हरताक्षरों से रू-ब-रू करा जाती है।   
     वैसे 10 मार्च 2025 को एक होटल (कोटा) में संपन्न एक सम्मान-पुरस्कार समारोह के अवसर पर अनायास ही सिंघल साहब के हाथों यह प्रति प्राप्त हुई। कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि बतौर पाठक मैं धीमा हूँ, पर संजीदा हूँ। पढ़ने लायक नया-पुराना कुछ भी मिले तो उसे तवज्जो देता हूँ। इसे भी देखा-पढ़ा है। लेकिन हाँ, लिखे पर लिखना टेढ़ी खीर-सा प्रतीत होता है, सो लिखना सुनिश्चित करने में विलंब हो सकता है। फिर भी इस कृति से गुजरना और उसे अभिमत-अनुशीलन का रूप देना सुखद ही रहा।
     ‘लेखकीय’ शीर्षक-तले मन की बात करते हुए प्रभात जी आरंभ में ही रेखांकित कर देते हैं कि राजस्थान वासी ही नहीं, प्रवासी राजस्थानी शब्दशिल्पी भी इस प्रदेश की माटी की गंध से जुड़कर यत्र-तत्र गौरव बढ़ा रहे हैं, साथ ही हिंदी साहित्य की पारंपरिक विधाओं से इतर समालोचना, समीक्षा, शोध, अनुवाद आदि के प्रति सृजन अवदान में पीछे नहीं रहे हैं। ऐसे रचनाकारों में इस कृति के फ़लक पर 11 प्रवासी और 51 वासी या अप्रवासी यानी समग्रतः राजस्थान से संबद्ध 62 रचनाकार यहाँ उपस्थित हैं। अनुक्रम में प्रवासी राजस्थानी सबसे पहले संजोए गए हैं। उनके बाद हैं क्रमशः अजमेर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर, कोटा, भरतपुर और अंत में सीकर संभाग के रचनाकार। सर्वाधिक प्रतिनिधित्व हुआ है कोटा से, उसके बाद है उदयपुर संभाग।  
       सामान्य नजर डाली जाए तो अधिकांश नाम चिरपरिचित हैं और व्यक्तिशः आत्मीय भी। सर्वश्री प्रो॰ अज़हर हाशमी (रतलाम), डॉ॰ विकास दवे (इंदौर), ओम नागर (ठाणे), इकराम राजस्थानी (जयपुर), वेद व्यास (जयपुर), फारुख आफरीदी (जोधपुर), जयप्रकाश पंड्या ‘ज्योतिपुंज’ (उदयपुर), डॉ॰ विमला भण्डारी (सलूम्बर), डॉ॰ इदुशेखर तत्पुरुष (भरतपुर), डॉ॰ गजसिंह राजपुरोहित (जोधपुर), दीनदयाल शर्मा (सीकर), नंद भारद्वाज (जयपुर), डॉ॰ पुरुषोत्तम ‘यकीन’ (भरतपुर)....साथ ही कोटा से डॉ॰अतुल चतुर्वेदी, अतुल कनक, जितेंद्र निर्मोही, सी॰एल॰ सांखला, रामेश्वर शर्मा ‘रामू भैया’, विश्वामित्र दाधीच, डॉ॰ कृष्णा कुमारी, किशन प्रणय, शिखा अग्रवाल... किसे चुनें, किसे गुनें, सभी हैं तो अपने ही, वे सब जिनकी आभा यहाँ-वहाँ दूर-दूर तक व्याप्त है।
          कहते हैं, है जैसे और जितने सृजनहार, वैसे ही कहने के तेवर, वैसे ही लिखने-पढ़ने के अंदाज़। मगर पठनीयता के संकट पर चिंतन करते हुए पुस्तक के फ्लैप पर उपस्थित राजेंद्र राव (कानपुर) आगाह करते हैं, “उड़िया, असमिया या जो ऐसे छोटे प्रदेशों की भाषाएँ हैं, उनमें पाठकों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होती आई है। हिंदी का ऐसा दुर्भाग्य है कि हमने पठन-पाठन की संस्कृति को विकसित करने में योगदान नहीं किया।“ जबकि मुंबई वासी वरिष्ठ लेखिका किरण खेरुका आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हुई जिम्मेदारी का एहसास करा जाती हैं, “कहीं भी रहो, अपनी संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं को कभी नहीं भूलो। महिलाएं खूब पढ़ें, पर कभी घमंड नहीं करें। इसी वजह से बहुत-से घर टूट जाते हैं।“ 
          वैसे इस पुस्तक की श्रमसाध्य एवं विस्तृत भूमिका ‘अक्षरों के आराधक : राजस्थान के साहित्य साधक’ को आकार दिया है कथाकार विजय जोशी ने। यों विजय जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व भी इस कृति में शामिल है। उन्होंने कतिपय रचनाकारों को आंशिक नजरिए से छुआ भी है। इस उपक्रम को अंतिम स्पर्श देते हुए (यदि कहीं-कहीं भाषिक जटिलता को नजर-अंदाज़ कर दिया जाए तो) वे लिखते हैं, “यह वह रचाव है जो इन साहित्यकारों ने राजस्थान की धरा पर ही नहीं उकेरा वरन अपने प्रवास की धरती के आँगन को भी स्पंदित किया है। यह स्पंदन वरिष्ठ लेखकों के साथ-साथ नवोदित सृजनकर्मियों के साथ ध्वनित होता हुआ रचनात्मक संस्कारों को अनुनादित करता है.... उल्लेखित साहित्यकारों के सृजनात्मक योगदान को समझने-परखने का अवसर भी प्रदान करता है।“
          शुभ संकेत यह भी है कि ‘राजस्थान के साहित्य साधक’ में डॉ॰ विमला भंडारी, किरण खेरुका, डॉ॰ अपर्णा पांडेय, डॉ॰ कृष्णा कुमारी सहित लगभग 20 महिला रचनाकारों ने अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराई है। प्रसंगवश बताना समीचीन होगा कि देश की पहली पं॰ जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान (2022-23) के पहले अध्यक्ष रहे इस संकलन में मौजूद श्री इकराम राजस्थानी। उन्ही के साथ विमला जी और मुझ (भप्रगौतम) को भी मानद सदस्य होने का सुअवसर मिला। आज विमला जी और ‘सलिला संस्था’ एक ही सिक्के के दो पहलू-से नजर आते हैं।   
          ध्यातव्य है कि इस कृति के सूत्रधार और लेखक डॉ॰ प्रभात कुमार सिंघल सक्रिय पत्रकार भी हैं। वे आयोजनों, प्रकाशनों, पुरस्कारों-सम्मानों की घातक लालसा की ओर इशारा करते हुए लिखते हें, “इससे स्वाध्याय में कमी तथा आगे निकलने की चाह बलवती होती जा रही है।... विषय वस्तु को ‘काटो और चिपकाओ’ (कट एंड पेस्ट) तथा किसी भी प्रकार जोड़-तोड़ कर प्रसिद्धि पाओ, का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। साहित्य के क्षेत्र में आज ऐसी अनेक चिंताएँ और चुनौतियाँ हैं, जिनसे बचकर शुचिता लाने पर विचार करना होगा।“  
          पूर्व प्रकाशित ‘जियो तो ऐसे जियो’ (?) और ’नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान’ जैसी कृतियों के क्रम में डॉ॰ सिंघल की तीसरी कृति है ‘राजस्थान के साहित्य साधक’। वे आल्हादित हैं और कहते भी हैं, ‘यह पुस्तक मेरा एक सपना था’ जो पूरा हुआ।
          अपने समय के शिक्षाविद एवं सौंदर्यशास्त्री हर्बर्ट रीड कहते थे, ‘मुझे सराहना करना सिखाओ, आलोचना करना नहीं।‘ सच, यह व्यक्तित्व विकास का अघोषित सूत्र है। दरअसल, भावों, विचारों और कल्पनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति का नाम है साहित्य। इस दृष्टि से यहाँ भाषा सहज, सरल है। इसीलिए वह सर्वसुलभ और संप्रेषणीय बन पड़ी है। उस पर भी विजय जोशी द्वारा परिकल्पित मुखावरण, स्तरीय मुद्रण और सौद्देश्य संयोजन ने पुस्तक के कलेवर पर चार चाँद जड़ दिए हैं। विश्वास है, यह प्रस्तुति सुधी पाठकों, नए-पुराने लेखकों और जिज्ञासु शोधार्थियों के बीच एक खास मुकाम बनाएगी। पुस्तक :राजस्थान के साहित्य साधक

 


Source : अभिमत भगवती प्रसाद गौतम,  1-त-8, अंजलि, दादबाड़ी, कोटा (राज)- 32400
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