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सभी शास्त्रों को एक सार है जैसा स्वयं के लिए चाहो वैसा दूसरो के साथ करोःसंयम ज्योति

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08 Sep 24
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सभी शास्त्रों को एक सार है जैसा स्वयं के लिए चाहो वैसा दूसरो के साथ करोःसंयम ज्योति

उदयपुर। सुरजपोल बाहर स्थित दादाबाड़ी में श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मन्दिर का ट्रस्ट द्वारा आयोजित किये जा रहे चातर्मास में समता मूर्ति साध्वी जयप्रभा की सुशिष्या साध्वी डॉ. संयम ज्योति ने सम्वत्सरि पर्व की महत्ता बताते हुए कहा कि यह वर्ष का अंतिम दिवस है। गत वर्ष में जो त्रुटियां हुई है उसके लिए क्षमा दे दो और क्षमा ले लो। पुराने बहीखाते निपटा देना चाहिए और कल से नये बहीखाते डालना परंतु पुराने बहीखाते की बैलेंस शीट नये बहीखाते में अटैच मत कर देना, ऐसा करने से नये बहीखाते डालना व्यर्थ हो जायेगा।
साध्वी ने कहा कि चार ज्ञान के धारी गौतम स्वामी आनंद श्रावक के पास क्षमायाचना करने चले गये परंतु अहंकार के पुतलों को अहंकार क्षमा नही माँगने देता और तिरस्कार क्षमा नही करने देता। उन्होंने कहा कि सारे शास्त्रों को एक सार है जैसा स्वयं के लिए चाहो वैसा दूसरो के साथ करो लेकिन व्यक्ति दूसरों को सजा देना चाहता है परन्तु स्वयं क्षमा चाहता है।
साध्वी ने कहा- इस पावन अवसर पर सभी को सप्ताह में सात दिन क्रोध करने का त्याग कर देना चाहिए। कारण कि सोमवार से सप्ताह प्रारंभ होता है, मंगलवार मंगलकारी होता है, बुद्ध को युद्ध नही करना चाहिए, गुरुवार तो गुरु का होता है, शुक्रवार शुक्रिया अदा करने के लिए होता है, शनिवार शनि की दशा लगा देता है और रविवार तो होली डे कहलाता है उस दिन तो क्रोध की छुट्टी करनी चाहिए। साध्वी ने कहा कि फिर भी कदाचित् क्रोध आ जाये तो क्रोध पर क्रोध करके स्वयं को पावन बना देना।


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