“पं. लेखराम जी अपने यशः शरीर से आज भी जीवित हैं”

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07 Mar 23
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“पं. लेखराम जी अपने यशः शरीर से आज भी जीवित हैं”

पं. लेखराम जी वैदिक धर्म एवं संस्कृति सहित ऋषि दयानन्द के अनन्य भक्त थे। उन्होंने अपने जीवन में जो कार्य किये उनके कारण वह आज भी अपने यशः शरीर से जीवित हैं। पं. लेखराम जी ने वैदिक धर्म का परिचय पाकर उसे पूरी तरह से अंगीकार किया था। वह अजमेर में ऋषि दयानन्द जी से मिले थे और वहां उनसे प्रश्न भी किये थे। यह वार्तालाप पं. लेख राम जी के जीवन चरित्र में उपलब्ध होता है। पं. जी ने प्राणपण से वैदिक धर्म का प्रचार किया था। वह एक निर्भीक एवं साहसी धर्म प्रचारक थे। उन्हें वैदिक धर्म के सिद्धान्तों, मान्यताओं एवं परम्पराओं का तलस्पर्शी ज्ञान था। पंडित जी ने अपने जीवन काल में अनेक स्वधर्मी बन्धुओं को विधर्मी होने से बचाया। उनके समय में विधर्मी स्वधर्म के अनुयायी बन्धओं का लोभ एवं छल-बल से धर्मान्तरण किया करते थे। ऋषि दयानन्द का सन् 1863 में आविर्भाव होने पर उन्होंने तर्क देकर वैदिक धर्म की सर्वोत्तमता श्रेष्ठता को सिद्ध किया था। इसे सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ में भी देखा जा सकता है।

 

पंडित जी को जहां कहीं से भी आर्य वा हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन की सूचना मिलती थी वह तत्काल वहां पहुंचने का प्रयास करते थे और अपने बन्धुओं को अपनी धर्म की श्रेष्ठता बताकर उन्हें विधर्मी होने से रोकते थे। वह विधर्मियों से शास्त्रार्थ करने की उच्चस्तरीय योग्यता भी रखते थे। विधर्मी उनके वैदिक धर्म इतर मतों के उच्च स्तरीय ज्ञान के कारण उनके सम्मुख अपने मत की उत्तमता को सिद्ध नहीं कर पाते थे। उनके जीवन में इस विषय के अनेक प्रसंग है। इसके लिए पाठकों को पंडित जी का स्वामी श्रद्धानन्द जी एवं प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी रचित जीवन चरित्र देखना चाहिये।

 

पंडित लेखराम जी ने एक महान कार्य यह किया कि उन्होंने ऋषि दयानन्द की सन् 1883 में मृत्यु के पश्चात देश के उन सभी स्थानों पर जाकर जहां जहां महान ईश्वरभक्त ऋषि दयानन्द जी गये थे, उनके जीवन की घटनाओं का संग्रह किया और उस एकत्र सामग्री के आधार पर ऋषि दयानन्द का वृहद जीवन चरित्र लिखा। यही जीवन चरित्र बाद के ऋषि दयानन्द जी के सभी जीवनीकारों के लिए उनके जीवन चरितों की रचना का आधार बना। पंडित जी ने बड़ी संख्या में वैदिक धर्म पर ग्रन्थ भी लिखे हैं। उनके सभी ग्रन्थ कुलियात आर्य मुसाफिर ग्रन्थावली में एक साथ प्रकाशित हुए हैं। इस ग्रन्थ का नया संस्करण प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी के सम्पापदन में परोपकारिणी सभा, अजमेर से दो खण्डों में प्रकाशित होकर उपलब्ध है।

 

पंडित लेखराम जी को ऋषि दयानन्द जी ने अजमेर में 25 वर्ष की आयु पूर्ण होने के बाद विवाह करने की सलाह दी थी। पंडित जी ने ऋषि के इस परामर्श का पालन किया था। उन्होंने माता लक्ष्मी देवी जी से विवाह किया था। लक्ष्मी देवी जी विवाह से पूर्व पढ़ी लिखी नहीं थी। विवाह के बाद पंडित जी ने उन्हें पढ़ाया और उन्हें वैदिक धर्मी बनाया था। माता लक्ष्मी देवी जी की भी वैदिक धर्म पर अगाध श्रद्धा थी। धर्म प्रचार की धुन में पंडित जी अत्यन्त व्यस्त रहते थे। वह अपने एक एकमात्र पुत्र का ध्यान नहीं रख सके थे। शैशवावस्था में ही उसका निधन हो गया था। इस पर भी उनके धर्म प्रचार के कार्यों में कोई व्यवधान उपस्थित नहीं हुआ और ही धर्म प्रचार धर्म कार्यों में किसी प्रकार की कोई कमी आई थी। पंडित लेखराम जी के जीवन में अर्थ शुचिता के भी अनेक उदाहरण पाये जाते हैं। वह आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब के प्रचारक थे। वह जब प्रचार के लिये बाहर के स्थानों पर जाते थे तो अपने यात्रा बिल में उन स्थानों का किराया सम्मिलित नहीं करते थे जहां उनका अपना कोई निजी काम होता था। एक बार पण्डित जी को पंजाब आर्य प्रतिनिधि सभा ने कहीं प्रचार के लिए भेजा था। लौटकर उन्होंने अपना यात्रा बिल जमा किया। उस बिल में उन्होंने एक ओर का किराया ही भरा था। पंजाब सभा के प्रधान स्वामी श्रद्धानन्द जी के पूछने पर उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर उन्हें भेजा गया था वहां उनका भी एक निजी काम था। इसलिए उन्होंने बिल में एक तरफ का किराया ही सम्मिलित किया है। यही उचित है।

 

उनके जीवन का एक प्रेरक प्रसंग यह है कि एक बार यात्रा में लम्बी अवधि तक व्यस्त रहने के कारण उनके वस्त्र मैले हो गये थे। वह स्वामी श्रद्धानन्द जी, जो पंजाब सभा के प्रधान और उनके मित्र भी थे, के पास पहुंचे और उनसे उनका स्वच्छ कुर्ता लिया। उस कुर्ते को उन्होंने स्वामी जी के सामने ही भीतर पहना और बाहर मैला कुर्ता पहन लिया। यह देखकर स्वामी श्रद्धानन्द जी ने प्रश्न किया जिसके उत्तर में उन्होंने कहा था कि स्वच्छ वस्त्र ही शरीर के सम्पर्क में होने चाहिये। इस कारण उन्होंने स्वच्छ वस्त्र को भीतर पहना था।

 

पंडित लेखराम जी लाहौर में रहते थे। वह ऋषि दयानन्द के जीवन पर स्वयं संग्रहीत सामग्री पर आधारित जीवन चरित्र लिख रहे थे। एक विधर्मी उनके पास धर्म जिज्ञासा की इच्छा लेकर आया था और कुछ दिन से उनके साथ साथ था। एक दिन मौका देखकर उसने अपनी ओढ़ी हुई चादर में से खंजर निकाल कर उसे उनके पेट में घोप दिया था। बलिदान से पूर्व पण्डित जी ऋषि दयानन्द का जीवन चरित्र लिख रहे थे। वह लेखन का कार्य पूरा कर उठे ही थे और उन्होंने अंगड़ाई ली थी। तभी वहां उपस्थित उस विधर्मी ने अपनी कटार को उनके पेट में घोप कर उनका बलिदान कर दिया था। यही घटना ऋषिभक्त धर्मवीर पंडित लेखराम जी की मृत्यु का कारण बनी थी। उस दिन 6 मार्च 1897 का दिवस था। आज पंडित लेखराम जी के बलिदान को 125 वर्ष पूरे हो गये हैं। पं. लेखराम जी का बलिदान वैदिक धर्मियों को वेद प्रचार करने और धर्म के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने की प्रेरणा करता है। हम आज पंडित जी के बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। हम परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि सभी वैदिक धर्मी अपने मतभेदों को भुलाकर एक हो जायें और वैदिक धर्म का प्राणपण से प्रचार कर संसार को आर्य बनाने का भरसक प्रयत्न करें। ओ३म् शम्।


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