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डॉ.संगीता देव के साहित्य की धारा से पर्यावरण की ओर बढ़ते कदम

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26 Sep 23
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा

डॉ.संगीता देव के साहित्य की धारा से पर्यावरण की ओर बढ़ते कदम

कल्पना नहीं होती कि किसी के भी जीवन का शौक़ कब और कैसे परवान चढ़ता है। सपना जो देखा है कैसे पुष्पित और पल्लवित होगा ।  परिश्रम सब करते हैं पर सपने किसी-किसी के पूरे होते हैं। कोटा की  एक ऐसी ही अंतर्मुखी प्रतिभा है डॉ. संगीता देव जिन्होंने न केवल अपने साहित्य स्वाध्याय और लेखन को आगे बढ़ाया वरन बचपन से प्रकृति और हरियाली प्रेम से अपने घर को तीन मंजिलें गृह उद्यान में बदल दिया। जिसे कोटा वासी भी देख कर दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं ।  हाल ही में दिल्ली से  “चलो बाग़वानी करें” यूट्यूब चैनल वाले स्वयं आकर इनके गार्डन के “एडेनियम के रख रखाव “, “वाटर लिली का खूबसूरत संसार”,  “टेरेस को किस तरह खूबसूरत गार्डन बनायें “,” “बालकनी गार्डन में  क्रिएटिविटी से ख़ूबसूरती में चार चंद लगायें”  आदि टॉपिक्स पर साक्षात्कार लेकर यू ट्यूब पर प्रसारित किये।
 **   जब मुझे इनके बारे में ज्ञात हुआ तो हर समय कुछ नया लिखने के मेरे लेखक मन ने इनसे मिलने को प्रेरित किया और रविवार 24 सितंबर को फोन पर समय लेकर अपने मित्र जितेंद्र गौड़ के साथ इनका यह गृह उद्यान देखने पहुंच गया। उद्यान क्या था, एक प्रकृति प्रेमी और कलाकार मन के सपनों का संसार सौंदर्यबोध से पुष्पित और पल्लवित था। तीन मजिल वाला यह खूबसूरत और आकर्षक उद्यान पिंजौर के सात तल्ले वाले उद्यान सदृश्य प्रतीत हो रहा था और चंडीगढ़ के राक गार्डन की झलक भी दे रहा था। 
**  साहित्यिक अभिरुचि :
 गार्डन को देख कर इनके ड्राइंग रूम में बैठ कर चर्चा की तो इन्होंने ने बताया कि बालकाल्य से ही साहित्य और पर्यावरण उनकी रुचि के विषय रहें हैं। पहले चर्चा हुई उनकी साहित्यिक अभिरुचि पर। बचपन से ही साहित्यनुरागी रही संगीता कहती हैं  साहित्यकारों की गद्य-पद्य रचनाएं पढ़ने की धुन सवार रहती थी। युवा अवस्था आते -  आते  इन्होंने  मुंशी प्रेमचंद, शिवानी, शरतचंद्र, अमृता प्रीतम, महादेवी वर्मा, धर्मवीर भारती, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुधा मूर्ति आदि के अधिकांश साहित्य का अध्ययन कर लिया था। इन महान साहित्यकारों की शायद ही कोई रचना बची हो जिसे इन्होंने नही पढ़ा हो। इन्होंने न केवल इनका साहित्य पढ़ा वरन उसे बखूबी समझा भी। अपनी साहित्यिक वृति को शिक्षा विभाग में आने पर भी आज तक निरंतर बनाए हुए हैं। ये ज़िला शिक्षण एवम् प्रशिक्षण संस्थान कोटा द्वारा  राज्य व ज़िला स्तरीय शैक्षणिक शोध लेखन से भी जुड़ी हुई हैं। इस संस्थान के माध्यम से आपने साझा रूप से शिक्षा विषयों पर कई शोध कार्य किए हैं और शोध पत्र भी लिखेभाइन। विभिन्न विषयों पर आपके आलेख विभागीय पत्रिकाओं के अलावा कई अन्य समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं।
काव्य सृजन :
     आपके चिंतन की धारा काव्य सृजन की ओर बही तो इन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया । कहती है काव्य सृजन का शोक नया-नया है। अभी तक माँ, रिश्तों, हमारी मातृभाषा, पिता, कोरोना काल में संवेदनायें, एक डॉक्टर, सूटकेस में लड़की तथा कई अन्य विषयों पर अनेक कविताएँ लिखी हैं और  इनकी काव्य रचनाएं भी कवि सृजन में दैनिक भास्कर सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  हैं। काव्य  सृजन निरंतर जारी हैं। अपने काव्य संग्रह पर पुस्तक प्रकाशित कराने की भी इनकी योजना है। आपकी " मेरे पिता" शीर्षक से लिखी गई एक भावपूर्ण कविता की बानगी देखिए.................
मुझे फिर से अपने सीने से लगा लो ना पापा, 
फिर से वही रानी बिटिया बना लो ना  पापा ।
जाड़ों की ठंड में अपने पास दुबका लेना , 
कभी गर्मागर्म पकौड़े और हलवा बना लेना, 
भैया से झगड़ने पर मेरा ही पक्ष ले लेना, 
बेटियों पर इस कदर भरोसा कर लेना,
दुनियाँ में ऐसे अनोखे आप ही हो ना पापा , 
फिर से वही रानी बिटिया बना लो ना  पापा ।
गर्मियों की दुपहरी में अपने साथ सुला लेना,
तेज़ धूप से बचाकर अपने पास पढ़ने बिठा लेना , 
साथ बिठाकर आम , तरबूज़ और ख़रबूज़े खिलाना,
सबका मिलकर ताश और कैरम की बाज़ी लगाना, 
दुबारा से  वही बचपन  लौटा  दो  ना  पापा,
फिर से वही रानी बिटिया बना लो ना  पापा ।
ब्याह के दिन स्वयं को काम में डुबो देना, 
विदाई के वक्त फिर फूट-फूट  कर रो देना,
आशीष और दुआओं से मेरी झोली भर देना, 
और नम आँखों से मेरे सुख की कामना करना, 
फिर से वो ही स्नेह लुटा  दो ना पापा , 
फिर से वही रानी बिटिया बना लो ना  पापा ।
मेरे आदर्श , मेरे संस्कार सब आपके हैं पापा, 
आपकी ही उम्मीदों , उड़ानों को जिया है पापा, 
हर ख़ुशी, हर सुख आपका ही दिया है पापा, 
जो कुछ आज हूँ सब आपकी ही देन हूँ पापा, 
मेरी आँखों में फिर से सपनों की उड़ान भरो ना पापा, 
फिर से वही रानी बिटिया बना लो ना  पापा ।
पर्यावरण प्रेम :
 साहित्यिक चर्चा के साथ ही संगीता ने बताया विभिन्न किस्मों के लगभग 600 पौधों की देखभाल प्रतिदिन वह स्वयं करती हैं। बचपन से ही उन्हें प्रकृति की रंगबिरंगी हरियाली सकून देती थी। एक सपना था जब मेरा अपना घर होगा तो उसे हरियाली से सजाऊंगी। उनका सपना यूं साकार होगा इसकी उन्हें कल्पना भी नहीं थी। आज वे प्रफुल्लित और उत्साहित हैं कि घर सज्जा से ही सही वे पर्यावरण संरक्षण में अपनी छोटी सी आहुति दे पा रही हैं। वे बताती है जो कुछ भी आपने देखा है यह सब सात - आठ साल में उसी प्रकार किया है जैसे चिड़िया तिनका - तिनका जोड़ कर अपना घोंसला बनाती है।
  निश्चित ही इन्होंने फलों की ख़ाली टोकरी, पुराने पाइप, खाने के ख़ाली डब्बे, बेकार हो गया झूला जैसे विभिन्न अनुपयोगी घरेलू सामान, टूटे हुए पेड़ के तने और ऐसे ही कई माध्यमों को पौधे लगाने में राक गार्डन की तरह उपयोग में लिया है। यही नहीं इन माध्यमों को कलात्मक रूप से निखार कर अत्यंत आकर्षक भी बना दिया है जो इनके सौंदर्यबोध का प्रतीक है । इन सबका संयोजन, प्रस्तुतिकरण और रखरखाव भी अद्भुत आकर्षण लिए हुए है। 
   चंपा, नाग चंपा, रात की रानी, गुलदाऊदी, गुलाब, हेलिकॉनिया, मोगरा, बिच्छू बेल के विभिन्न रंग, बोगनबेलिया, एंथुरियम,बेगोनिया, कॉस्मोस, ज़रबेरा, डेजर्ट रोज( एडेनियम) की बहुत से रंग बिरंगी फूलों की किस्में- अरेबिकम, क्रिस्पम और ओबेसम के विभिन्न प्रकार के रंगबिरंगे फूलों और पौधों से सजा टेरेस गार्डन आकर्षक फव्वारे और झरने के साथ अत्यंत मनोहारी है।
     एचिनॉप्सिस, होवर्थिया, गुलाबी, पीले, लाल , भूरे, नारंगी रंग के फूलों वाले कैक्टस की शायद ही कोई किस्म शेष हो जो यहां नहीं है। बड़े-बड़े पानी के टबों में जल ( कुमुदनी) लिली की अनेक किस्में- ग्लोरियोसा, पुत्राक्षा, पर्पल जॉय, वनविसा, स्नोबॉल, मोरादाबे, परानी, कॉलोरैडो, स्नोफ़्लेक्स, जेकाफ़ोंग, सैजिटेरिया ,जैपोनिका  की छटा देखते ही बनती है। ऐसे ही लिली की रेन लिली, मेक्सिकन लिली, स्पाइडर लिली, पीस लिली भी गृह वाटिका की शोभा को कई गुणा बढ़ा रही हैं। साइकस, फाइकस, रबर प्लांट, बर्ड प्लांट (हेलोकॉनिया), जेड प्लांट, ज़ी- ज़ी भी अपने आकर्षण के साथ शोभा बढ़ा रहे हैं। तीन मंजिलों के गृह उद्यान की टेरेस पर बनी बगिया की सुंदरता का तो कहना ही क्या ! बस एक तक देखते रह जाओ।
    इतना ही नहीं कक्षों की दीवारों तक को खूबसूरत प्रकृति चित्रण से सजाया गया है। दूसरी मंजिल पर विभिन्न पौधों से सजा झूला और लकड़ी के चार डिब्बों की ट्रेन देखते ही बनती हैं। आप वर्तमान में कोटा हार्टिकल्चर सोसाइटी की उपाध्यक्ष होने के नाते लोगों में प्रकृति, पौधों, फूलों और हरियाली बढ़ाने के प्रति जागृति भी पैदा कर रही हैं। इस सोसायटी के वर्तमान सदस्य पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण कार्य में लगे हैं। पर्यावरण संरक्षण की समर्थक डाॅ संगीता का कहना है  " यह प्रकृति बहुत खूबसूरत है, और  हम बहुत भाग्यशााली हैं जाे इसे देख पा रहे हैं। हमें ऐसा कोई काम नही करना चाहिए जिससे पर्यावरण काे नुकसान हाे।" 
समाज सेवी
 स्वाध्याय, लेखन,शिक्षण और उद्यानिकी अभिरुचियों के साथ-साथ आप निजी रूप से और लॉयंस क्लब साउथ की बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर के रूप में समाज सेवा से भी जुड़ी हैं। इनके विचार हैं कि" हर व्यक्ति को अपनी कमाई का छोटा सा अंश ही सही पीड़ितों,निर्धनों और जरूरतमंदों की मदद के लिए लगा कर पीड़ित मानवता की सेवा के धर्म का पालन करना चाहिए"। अपने इन्हीं विचारों के साथ ये सामाजिक सरोकारों में भी सदैव अग्रणीय रहती हैं। समय-समय पर निर्धन छात्राओं की फ़ीस भरना, ज़रूरतमंदों को भोजन कराना , कंबल , वस्त्र आदि वितरित कर मानव सेवा में लगी रहती हैं। इसके साथ - साथ  विद्यालयों में पंखे, कंप्यूटर, रंग रोगन, स्वेटर, स्टेशनरी आदि के माध्यम से भी सहायता करती रहती हैं । आपने राज्य सरकार की स्वेच्छिक अनुदान योजना के अंतर्गत कोटा शहर के 20 प्राथमिक विद्यालयों में अपनी ओर से अक्षय पात्र  में  प्रथम अनुदान दे कर योजना को गति प्रदान की । अनेक संस्थाओं से जुड़कर सामाजिक और धार्मिक कार्य में भी पूरी रुचि लेती हैं।
पुरस्कार :
आपको समय - समय पर बेस्ट टीचर, बागवानी में हाट्रीकल्चर सोसायटी से, लाइंस क्लब और रोटरी क्लब द्वारा सम्मानित किया गया। आपको बागवानी में ऑनलाइन प्रतियोगिताओं में “एक्वेटिक गार्डनर्स “ तथा  “गार्डनर्स वर्ल्ड” के ऑल इंडिया  ग्रुप्स द्वारा मेडल्स से सम्मानित किया गया है। अन्य संस्थाओं और शिक्षा विभाग द्वारा भी प्रशस्ति पत्र एवम् प्रमाण पत्रों से सम्मानित किया गया।
परिचय :
साहित्य के साथ पर्यावरण चेतना जागृति में लगी बहुप्रतिभा की धनी डॉ.संगीता देव का जन्म 7 मार्च 1973 को रामगंजमंडी में स्व.हसराज सुनेजा के परिवार में हुआ। बचपन में ही मातृत्व सुख से विमुख हो गई संगीता की हायर सेकेंडरी तक की शिक्षा रामगंजमंडी में हुई। आपने राजकीय महाविद्यालय कोटा से टॉपर रह कर गोल्ड मेडल के साथ रसायन विज्ञान में एम.एससी. और एम.फिल.की डिग्री प्राप्त की। आपका विवाह न्यूरोलॉजी के विख्यात चिकित्सक डॉ.अमित देव के साथ हुआ । जब वे जयपुर में एम.एस.कर रहे थे उसी दौरान संगीता ने राजस्थान विश्व विद्यालय से शिक्षा में एम.एड और " मध्यांह भोजन का छात्रों के नामांकन, उपस्थिति तथा ठहराव पर प्रभाव का अध्ययन” विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप वर्ष 1997 में शिक्षा विभाग में चयनित हो कर राजकीय माध्यमिक विद्यालय गंगधार में अध्यापिका नियुक्त हुई। आपने सर्व शिक्षा अभियान में कोटा शहर ब्लॉक प्रभारी के रूप में भी सेवाएं दी। वर्तमान में आप कोटा में  राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय गोपाल मिल, कोटा में सेवा रत हैं।आप संगीत और पाक कला में भी गहरी रुचि रखती हैं। आपके पति डॉ.अमित देव कोटा हार्ट इंस्टिट्यूट में सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। बहुत ही सहज और सरल व्यक्तित्व वाले डॉ.अमित को फोटोग्राफी खास कर एनिमल फोटोग्राफी में न केवल विशेष रुचि है वरन वे एनिमल्स के व्यवहार और मनोविज्ञान की भी अच्छी समझ भी रखते हैं। हर काम का प्रचार करने के युग में भी प्रचार से दूर रहने वाली संगीता डॉ.अमित देव के नाम और सफलता के पीछे आधार स्तंभ की तरह खड़ी रहती हैं । 


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