**उदयपुर, - गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित एक प्रेरणादायक संवाद में पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के सदस्य डॉ. अनिल मेहता ने प्रकृति को सर्वोच्च गुरु के रूप में मान्यता देते हुए इसके समृद्ध जैव विविधता के माध्यम से दिव्य स्वरूप को उजागर किया।
**प्रकृति का दिव्य स्वरूप**
डॉ. मेहता ने भारतीय गुरु परंपरा की प्राचीन प्रतिबद्धता को रेखांकित किया, जो पर्वतों, वनों और जल स्रोतों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए थी। उन्होंने कहा, "प्रकृति स्वयं सर्वोच्च गुरु है, जो अपनी दिव्यता को जैव विविधता के माध्यम से प्रकट करती है। यह मानव जीवन को समृद्धि, शांति और सुख प्रदान करती है। हमारी झीलों, नदियों, पर्वतों और वनों का संरक्षण हमारे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का अभिन्न अंग है।"
**प्रकृति संरक्षण की प्रतिबद्धता की पुन: पुष्टि**
डॉ. मेहता ने लोगों से गुरु पूर्णिमा के अवसर पर प्रकृति संरक्षण की अपनी प्रतिबद्धता की पुन: पुष्टि करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्रकृति के प्रति श्रद्धा और सेवा को फिर से समाज के मुख्य मूल्यों के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है। "भारत की गुरु परंपरा प्रकृति संरक्षण में गहराई से निहित थी और समाज में प्रकृति-मित्र जीवनशैली को बढ़ावा देती थी," उन्होंने जोड़ा।
**प्रख्यात पर्यावरणविदों का समर्थन**
प्रख्यात पर्यावरणविदों जैसे तेज शंकर पालीवाल, नंद किशोर शर्मा, कुशल रावल, रमेश चंद्र, द्रुपद सिंह और पल्लब दत्ता ने डॉ. मेहता की भावनाओं का समर्थन किया। उन्होंने सामूहिक रूप से जोर देकर कहा कि वर्तमान वैश्विक प्राकृतिक संसाधन क्षरण संकट का समाधान भारत की समृद्ध गुरु परंपरा में निहित है।
**प्रकृति की सेवा: सर्वोच्च गुरु सम्मान**
संवाद ने इस बात पर प्रकाश डाला कि गुरु सम्मान और विश्वास का सर्वोच्च रूप प्रकृति की सेवा है, जो स्थायी मानव अस्तित्व के लिए प्रकृति संरक्षण को दैनिक जीवन में एकीकृत करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।