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डॉक्टर शमीम खान ने जान लेवा एक्यूट ने क्रोटाइजिंग पैंक्रियाटाइटिस" नामी बीमारी के रोगी का किया सफल इलाज

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23 Jul 24
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डॉक्टर शमीम खान ने जान लेवा एक्यूट ने क्रोटाइजिंग पैंक्रियाटाइटिस" नामी बीमारी के रोगी का किया सफल इलाज

कोटा । निदेशालय यूनानी चिकित्सा विभाग राजस्थान के अंतर्गत मस्जिद गली भीमगंज मण्डी कोटा जंक्शन स्थित राजकीय यूनानी औषधालय उत्तर कोटा में कार्यरत चिकित्सा प्रभारी डॉ मोहम्मद शमीम खान, एम डी (युनानी मेडिसिन), ने बताया कि 28 अप्रैल 2024 को पदमपुरा किशनगंज बारां निवासी एक 44 वर्षीय पुरुष यूनानी चिकित्सा प्रामर्श हेतु आया। इनका क्लिनिकल हिस्ट्री लेने पर मालूम हुआ कि वह पिछले ढाई महीने से "एक्यूट नेक्रोटाइजिंग पैंक्रियाटाइटिस" नामी रोग से पीड़ित था। उसे बुखार, पेट में दर्द व सूजन, पेट फूला हुआ, जी मालिश, उल्टी, भूख में कमी की शिकायत थी। पैंक्रियाज में ड्रेनेज ट्यूब डाली हुई थी जिस से गाढ़ा बदबूदार पीप प्रति दिन 50-60 सी.सी. निकल रहा था। गुर्दे खराब होने लगे थे। सीरम क्रिएटिनिन स्तर बढ़ रहा था। इन्फेक्शन कंट्रोल में नहीं आ रहा था। टी एल सी स्तर बढ़ा हुआ था। रोगी को लिक्विड डाइट जैसे जूस इत्यादि दिया जा रहा था। शारीरिक गतिविधि बिल्कुल न के बराबर थी।  केवल पाखाना पेशाब के लिए ही जाता तो आंखों के सामने अंधेरा छा जाता और चक्कर आ जाता। दुर्बलता के कारण वह ज्यादा समय बिस्तर पर ही लेटा रहता था। शरीर का वज़न 27 किलोग्राम घट कर केवल 47 किलोग्राम रह गया था। जबकि बीमार होने से पहले उसका वज़न 74 किलोग्राम था। 9 फरवरी को ज्यादा दारू पी लेने की वजह से अचानक उसके पेट में दर्द, सूजन, और तनाव, उल्टी की शिकायत हुई तो एम बी एस हॉस्पिटल कोटा में उपचार हेतु एडमिट कर दिया गया। यहां "एक्यूट  पैंक्रियाटाइटिस" रोग का निदान कर चिकित्सा किया गया। 21 फरवरी को अचानक तबियत बिगड़ने लगी और सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो जयपुर एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एक पेट रोग विशेषज्ञ द्वारा परामर्श कर उपचार प्रारंभ किया गया। वहां पता चला कि "एक्यूट नेक्रोटाइजिंग पैंक्रियाटाइटिस" के साथ साथ पेट और फेफड़े में पानी भर गया है यानी "एसाइट्स"और "प्लूरल एफ्यूशन" भी उत्पन्न हो गया है। 15 दिन के इलाज के बाद ये दोनो बीमारियां तो ठीक हो गईं लेकिन एक्यूट नेक्रोटाइजिंग पैंक्रियाटाइटिस  तथा पैंक्रियाज से निकलने वाले पीप की गुणवत्ता और मात्रा पर कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा था। ये कभी कम हो जाते तो कभी तीव्र हो जाते। इस दौरान कई बार एंटीबायोटिक बदला गया। काफी महंगी एंटीबायोटिक दिया जा रहा था।  डॉ. खान ने मरीज़ को ऐलोपैथिक ट्रीटमेंट जारी रखते हुए इसके साथ यूनानी चिकित्सा लेने की सलाह दी। उपचार के तौर पर इम्यून इन्हांसर, एंटीबैक्टीरियल, एंटी इन्फ्लेमेटरी, एनाल्जेसिक, वांउड हीलर, ब्लड प्यूरीफायर तथा हाइपोग्लाइसेमिक गुणों वाले जड़ी बूटियों का एक यूनानी मिश्रण "नक़ू ए शाहतरा" 35 ग्राम का आसव अर्थात इसे रात को 100 एम एल गरम पानी में भिगोकर सुबह खाली पेट छान कर फिर इसी तरह सुबह भिगोकर शाम को खाली पेट छान कर पीने के लिए कहा गया। इसके साथ ही "अर्क ए मको" 50 एम एल और "अर्क कासनी" 50 एम एल सुबह शाम खाली पेट, और "अर्क बादयान" 50 एम एल दोपहर व रात में खाने के बाद सेवन करने के लिए कहा गया। इलाज के सात दिन बाद बुखार, पेट में दर्द, मतली उल्टी  दूर हो गया। पेट की सूजन व फुलाव में कमी आ गई। भूख बढ़ने लगी। पैंक्रियाज से निकलने वाले पीप की मात्रा कम यानी प्रति दिन 20 से 25  सी. सी. हो गई और मवाद में पतलापन आ गया। बदबू भी कम हो गई। सीरम क्रिएटिनिन और टी एल सी नॉर्मल रेंज में आ गया। रोगी को सेमी लिक्विड डाइट जैसे दलया खिचड़ी इत्यादि खाने के लिए कहा गया। 30 मई से नियमित आहार जैसे दाल रोटी इत्यादि खाने की सलाह दी गई। उसका शरीरिक शक्ति बहाल हो गया। मरीज चलने फिरने लगा। 30 जून को पैंक्रियाज से ड्रेनेज ट्यूब निकाल दिया गया। यूनानी औषधि "नक़ू ए शाहतरा"  15 जुलाई तक दिया गया। मरीज़ का स्वास्थ अब ठीक है। पैंक्रियाटाइटिस से उत्पन्न होने वाली जटिलताओं जैसे हाई शूगर इत्यादि का उपचार अभी भी चल रहा है। अगर इन्फेक्शन से पैंक्रियाज का 50 प्रतिशत हिस्सा प्रभावित होता है तो मृत्यु दर 30 प्रतिशत से ज्यादा होता है।
डॉ. खान का यह भी कहना है कि आम तौर से इमरजेंसी और एक्यूट रोगों का इलाज ऐलोपैथिक मेडिसिन से ही किया जाना चाहिए लेकिन गंभीर और जटिल रोगों में अगर दवाओं का रिस्पॉन्स न आ पा रहा हो तो मरीज की जान बचाने के लिए कंबाइंड थैरेपी यानी ऐलोपैथिक और यूनानी मेडिसिन से एक साथ उपचार विशेषज्ञ की निगरानी में किया जा सकता है। इस से शरीर का रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और रोग से जल्द उबरने में मदद मिलती है। इसके अतिरिक्त दवाओं के दुष्प्रभाव से लिवर किडनी और दूसरे ऑर्गन को भी बचाया जा सकता है। फालिज, लकवा, फेफड़े, आंतों और दिमाग की टी. बी., क्रोनिक किडनी फेल्योर, क्रोनिक हार्ट फेल्योर, पोस्ट ट्राउमेटिक सर्वाइकल माइलोपैथी सहित अन्य कई बीमारियों में यह अनुभव कर चुके हैं। 


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