दयपुर : आमतौर पर गर्भावस्था 40 सप्ताह की होती है, लेकिन हाल ही में उदयपुर के पारस अस्पताल में तय तारीख से 3 महीने पहले, 26 सप्ताह में ही प्रसूता की प्री- मैच्योर डिलीवरी हुई। जन्म के दौरान नवजात का वजन सिर्फ 700 ग्राम था और प्री- मैच्योर होने के कारण नवजात को बर्थ एस्फिक्सिया हुआ जिसमें ऑक्सीजन बच्चे के मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पा रहा था और बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।
पारस अस्पताल के डॉ. आशीष चंद्रकांत थिटे, कंसल्टेंट, पेडियेट्रिक एवं नियोनेटल इंटेंसिविस्ट ने बताया की गर्भावस्था के 28 सप्ताह से कम उम्र के शिशुओं के लिए मां के गर्भ से बाहर जीवित रहना मुश्किल होता है। बच्चे की जान बचाने के लिए उसे तुरंत वेंटीलेटर सपोर्ट पर रखा गया और लगभग 8 दिनों के लिए बच्चे को वेंटीलेटर पर रखा गया। सांस को नियंत्रण में लाने के लिए 30 दिनों तक बच्चे को कांस्टेंट प्रेशर एयर पंप द्वारा सांस दी गयी और हाई फ्लो नेजल कैनुला भी लगाया गया।
डॉ. राजकुमार बिश्नोई ने बताया की बच्चे को कई बीमारियां थी जो ज्यादातर प्री- मैच्योर शिशुओं में देखी जाती है जैसे गंभीर एपनिया, एनीमिया, आरडीएस, सेप्सिस, फीड इन्टोलेरेंस, आर.ओ.पी (आंखों की परेशानी) जिसमें बच्चे की आंख में रेटिना पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता और लंग्स भी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए थे। पारस अस्पताल के एनआईसीयू के विशेषज्ञ स्टाफ की मदद से नवजात की अच्छी देखभाल की गई और निरन्तर निगरानी में रखा गया। 80 दिनों तक एनआईसीयू में रखने के बाद, लगभग 2 किलो वजन बढ़ाने के बाद और सभी जटिलताओं का ख्याल रखते हुए बच्चे को स्वस्थ कर सामान्य स्थिति में अस्पताल से डिस्चार्ज दिया गया।उदयपुर का पारस अस्पताल माँ और बच्चे की देखभाल के लिए सदैव प्रतिबद्ध है।