55 वर्षीय व्यक्ति की मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी प्रक्रिया कर बचाई जान

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Published on : 28 Feb, 23 14:02

उदयपुर के पारस अस्पताल की न्यूरो टीम ने मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी द्वारा इलाज में सफलता हासिल की

55 वर्षीय व्यक्ति की मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी प्रक्रिया कर बचाई जान

उदयपुर,  : उदयपुर के पारस अस्पताल की न्यूरो टीम ने 55 वर्षीय पुरुष को मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी की इलाज की प्रक्रिया द्वारा ठीक किया। इस प्रक्रिया में ब्लाॅक हो चुकी रक्त वाहिकाओं में से बिना चीर-फाड़ के बड़े क्लाॅट को निकाला गया है। यह प्रक्रिया स्ट्रोक के शुरुआत के 24 घंटे बाद तक भी की जा सकती है। यह बहुत जटिल प्रक्रिया थी जिसे उदयपुर के पारस अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट न्यूरोलॉजी एंड इंटरवेंशनल न्यूरो फिजिशियन - डॉ. तरूण माथुर व सीनियर कंसल्टेंट न्यूरोलॉजी - डॉ. मनीष कुलश्रेष्ठ की न्यूरो टीम ने सफल बनाया।

निम्बाहेड़ा के 55 वर्षीय पुरुष के मस्तिष्क के दाहिने आधे हिस्से को आपूर्ति करने वाली एक प्रमुख धमनी बंद हो गई थी, जिस कारण मरीज का बायां हाथ और पैर कार्य नहीं कर रहा था। अस्पताल में उनके सिर का एमआरआई स्कैन किया गया जिसमें यह सामने आया की मस्तिष्क के दाहिनी तरफ इन्फाक्ट है। एमआरआई स्कैन से ऐसा लगा कि मस्तिष्क के दाहिने आधे हिस्से को आपूर्ति करने वाली एक प्रमुख धमनी बंद हो गई है। जिसे ठीक करने के लिए मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी द्वारा इलाज जरूरी था। फिर डॉक्टरों ने उनके परिवार वालों को समझाया और अंत में इस प्रक्रिया से मस्तिष्क के दाहिने आधे हिस्से की आपूर्ति करने वाली बड़ी धमनी से थ्रोम्बस को तार के द्वारा हटा दिया गया, जिसके बाद मरीज वापस ठीक होने की स्थिति में आने लगा और उसके हांथ पैर भी हिलने लगे। हालांकि अब मरीज ठीक है एवं अपना स्वयं का कार्य खुद ही कर रहा है। यह प्रक्रिया न्यूरो कैथलैब में की गई।

पारस अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट न्यूरोलॉजी एंड इंटरवेंशनल न्यूरोलॉजी, डॉ. तरूण माथुर ने बताया, “मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी तकनीक राजस्थान के चुनिंदा केंद्रों में ही उपलब्ध है। इससे न सिर्फ मरीज की जान बचाई जाती है बल्कि, स्ट्रोक के बाद विकलांगता की संभावना को भी कम हो जाती है। इस प्रक्रिया में एक रिट्रीवर स्टेंट डिवाइस पेट एवं जांघ की बीच की जगह से रक्तवाहिनी में डाला जाता है और आर्टरी से होते हुए दिमाग तक पहुँचाया जाता है, जहाँ इसका उपयोग खून के थक्के को हटाने के लिए किया जाता है। परीक्षणों से पता चला है कि यदि मरीज स्ट्रोक के लक्षण शुरू होने के 6 से 8 घंटे के भीतर इस प्रक्रिया को कराता है तो उसके जीवित रहने की संभावना और जीवन की गुणवता काफी बढ़ जाती है।"

पारस अस्पताल उदयपुर के सीनियर कंसल्टेंट न्यूरोलॉजी, डॉ. मनीष कुलश्रेष्ठ, ने बताया, “मरीज को जब अस्पताल में लाया गया था, उसके बाएं हाथ एवं पैर में कमजोरी थी। फिर मरीज की स्थिति को देखते हुए मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी से उनका इलाज करने का फैसला लिया। इसके लिए उनके परिवार वालों को भी समझाया गया और उसके बाद बड़ी सावधानी पूर्वक इस प्रक्रिया द्वारा मरीज की जान बचाई जा सकी। यदि मरीज के लक्षणों को जल्दी पहचान कर अस्पताल में लाया जाए तो उनके इलाज के लिए इन तकनीकों के माध्यम से लाभ मिल सकता है। इसलिए अगर किसी मरीज के शरीर के एक हिस्से में कमजोरी हो या चेहरे के टेढ़ेपन या बैलेंस की समस्या हो तो तुरंत उचित अस्पताल में संपर्क करना चाहिए।"


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