6 दिवसीय महाराणा कुंभा संगीत समारोह सम्पन्न

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Published on : 19 Mar, 23 15:03

ताल कचहरी, कत्थक, भरतनाट्यम एवं ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति के साथ 6 दिवसीय महाराणा कुंभा संगीत समारोह सम्पन्न

6 दिवसीय महाराणा कुंभा संगीत समारोह सम्पन्न

उदयपुर। महाराणा कुंभा संगीत परिषद द्वारा भारतीय लोककला मण्डल में आयोजित किये जा रहे 60 वें महारणा कंुभा संगीत समारोह के छठें एव अंतिम दिन आज कृष्णेंदु साहा ओडिसी नृत्य की एवं द्वितीय सत्र में कार्यक्रम के अंत में दिल्ली के मशहूर दी प्रोजेक्ट त्रिवेणी ग्रुप, ताल कचहरी, कत्थक, भरतनाट्यम एवं ओडिसी नृत्य की सामूहिक प्रस्तुति के साथ समारोह सम्पन्न हुआ।  

दूरदर्शन ग्रेडेड आर्टिस्ट गुरु शर्मिला विश्वास के शिष्य उदयपुर के कृष्णेंदु साहा ने अपने कार्यक्रम की शुरूआत अपनी गुरु शर्मिला विश्वास द्वारा रचित रामाष्टकम से जहां पं. अनहोन भगवान राम के किए हुए सकल अद्भुद लीला के वर्णन से किया।

उनकी द्वितीय प्रस्तुति के रूप में गुरु शर्मिला विश्वास द्वारा रचित दशावतार एबंग मानव विद्रोह के इतिहास को प्रस्तुत किया।  इस प्रस्तुति में उन्होंने दिखाया कि पानी में मीन अवतार, फिर कुर्मा, अर्ध मानव नरहरि, बिबारतन का प्रथम मानव वामन, इंसान शिकार करना शुरू किया अर्थात परशुराम, फिर इंसान जनपद अभिषकर किया यानि राम, अनहोन फसल फलाया याने बलराम, उनकी बुद्धि का विकास याने बुद्ध, लेकिन इंसान का प्यार, प्रकृति को नष्ट करना, अपने बुद्धि का दूर-उपयोग एक दिन उनका विनाश का कारण बनेगा। दशम अवतार कल्कि ऐसे ही पंचतत्व (धरती, जल, आग, वायु, आकाश) के मध्यम से मानव सभ्यता का विनाश करेंगे, लेकिन हर विनाश के पश्चात आती है नयी सृष्टि। एक नई पृथ्वी की उत्पत्ति एवं जीवन का विबार्टन की धारा चलती ही रहेगी।

अपनी तृतीय प्रस्तुति के रूप में कन्नड़ भजन कृष्णा नी बे गाने..., जहां उन्होंने एक भक्त को उनके ध्यान में प्रभु कृष्ण के साथ मुलाकात होना, भगवान कृष्ण को खुद के सेवा करने के दृश्य वर्णन किया। अंत में उन्हें पता चलता है उनके प्रभु कृष्ण वास्तव में उनके पास आये थे जिन्होंने उनके पास खुद का एक चिन्ह छोड़ जाते है।

उनकी अंतिम प्रस्तुति मोक्ष मंगलम की दी जिसमें उन्होंने एक नाटक के जरिये अपने शरीर और आत्मा को सर्वोच्च स्वाधीनता में ले जाता है। जहां उनके नृत्य शैली एक परम प्राप्ति की महसुस में खुद को विलीन करते हैं।

कार्यक्रम की द्वितीय प्रस्तुति के रूप में गंगानी फैमिली की सौ साल पुरानी संगीत विरासत को संभाल एवं छठी पीढ़ी से नृत्य संगीत की सेवा करती आ रही दी प्रोजेक्ट त्रिवेणी ने कत्थक भरतनाट्यम और ओडिसी, भारत की तीन मुख्य नृत्य विधाओं का समावेश प्रस्तुत किया, साथ ही कर्नाटक एवम उत्तर भारतीय संगीत शैली का वाद्य वृंद भी पेश किया। तबला, पखावज, बांसुरी, मृदंगम, सारंगी, केहोन,और हिंदुस्तान कंठ संगीत की सामूहिक प्रस्तुति ने श्रोताओं को सम्मोहित कर दिया। दी त्रिवेणी प्रोजेक्ट के  मुख्य सदस्य मोहित गंगानी के साथ उनकी संगत के सहायक कलाकार संजीत गंगानी, वृंदा चड्डा, राधिका कटहल,विजय परिहार, सलमान वारसी, टीना दास, आरोही अठावले, अश्मित देव, संगीत हरिदास, रजब अली, सिद्धार्थ, प्रणव चौहान,स्मृति बोहरा, पूजा चावला आदि ने अपनी प्रस्तुति दी।

समारोह की मुख्य अतिथि महारानी कुंवरानी निवृत्ति कुमारी मेवाड़ थी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. लोकेश जैन एवं विदुषी जैन ने किया। परिषद के मानद सचिव मनोज मूर्डिया  ने दर्शकों,मीडिया एवं परिषद से जुडे़ सभी सदस्यों का आभार ज्ञापित किया कि उनके कारण पहली बार यह समारोह 6 दिन का आयोजन सफल एवं संभव हो पाया। प्रारंभ में कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. प्रेम भण्डारी , पुष्पा कोठारी, परवेज जाल,मनोज मुर्दिया, डॉ देवेंद्र सिंह हिरण,महेश गिरी,परवेज गोस्वामी ने  पूर्व आरएएस दिनेश कोठारी,भागवत बाबेल का स्वागत किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि द्वारा डा पामिल मोदी असिस्टेंट प्रोफेसर संगीत विभाग सुखाड़िया यूनिवर्सिटी  द्वारा लिखित पुस्तक भारतीय संगीत का अध्यात्मक पक्ष का विमोचन किया गया।*

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