बेपरवाह
हाथी
कहाँ तक उलझे
भौंकने वाले
कुत्तों से,
कहाँ शहर का गजराज
और कहाँ
गली-गली में गुर्राते
कुत्तों के डेरे,
हाथी
बंद कर लेता है
अपने कानों की खिड़कियाँ
अन्दर की ओर,
और
बेफिक्र होकर
बढ़ता रहता है
मंजिल की ओर
कुत्तों को सायास चिढ़ाते हुए।
चलता रहता है
यह सिलसिला बदस्तूर
कुत्तों को
बगैर टुकड़े डाले
हाथी के आगे बढ़ते रहने का।