उदयपुर। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की ओर से सिंधी बाजार स्थित पंचायती नोहरे में श्रमण संघीय प्रवर्तक सुकन मुनी जी महाराज के सानिध्य में पर्यूषण महापर्व का अन्तिम दिन संवत्सरी दिवस के रूप में मनाया। महामंत्री एडवोकेट रोशन लाल जैन ने बताया कि पर्यूषण महापर्व के अन्तिम दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पंचायती नोहरे में पहुंचे और मुनीश्री सुकन मुनि जी से आशीर्वाद लिया। पर्यूषण महापर्व के तहत श्रद्धालुओ में लगातार धर्म आराधना चल रही है। जैन ने सभी श्रावकों को ज्यादा से ज्यादा धर्म लाभ लेने का आह्वान करते हुए आगामी दिनों में होने वाले कार्यक्रमों और व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी दी।
धर्म सभा में संत मुनियों ने भी अपने मन वचन कर्म के द्वारा
हुई किसी भी तरह की भूल या गलती के लिए सभी से खामतखामणा और मिच्छामी दुक्कडम बोलकर क्षमा याचना की। श्रमण संघ एवं श्राविका संघ के पदाधिकारियों एवं श्रावकों ने सालभर में मन वचन कर्म से हुई किसी भी भूल-चूक एवं गलती के लिए खामतखामणा एवं मिच्छामी दुक्कडम बोलकर क्षमा याचना की। धर्मसभा में वरूण मुनि द्वारा वाचन किये जा रहे अन्तगढ सूत्र महाग्रंथ का भी समापन हुआ।
पर्युषण महापर्व के अंतिम दिन संवत्सरी महापर्व पर्व के उपलक्ष में सुकन मुनि जी महाराज ने सभी को क्षमा की प्रेरणा देते हुए कहां कि जिसके जीवन में क्षमा है उसकी आत्मा शुद्ध होती है। क्षमा वीरस्य भूषणम यानी कि क्षमा वीरों का आभूषण होता है। पपर्यूषण महापर्व एवं क्षमा भाव का अर्थ बताते हुए मुनीश्री ने कहा कि जिस तरह से शरीर के पोषण के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। नहीं तो इसके अभाव में शरीर कमजोर पड़ जाता है। उसी तरह से हमारे भीतर बैठी आत्मा की शुद्धी एवं उसका पवित्र पोषण करने के लिए धर्म आराधना बहुत जरूरी है। और इसी धर्म आराधना करने के पर्व को महापर्यूषण पर्व कहते हैं। इस महापर्व में संवत्सरी महापर्व सबसे बड़ा होता है। यह संवत्सरी महापर्व हमारे धर्म का गौरव आधार है। ऐसा महापर्व किसी और जगह नहीं मनाया जाता है। मुनिश्री ने कहा कि क्षमा याचना करने से पूर्व अपने मन में ऐसा भाव नहीं रखें कि पहले सामने वाला कदम बढ़ाएगा उसके बाद ही दूसरा कदम मै बढाऊंगा। जीवन में ध्यान रखना जो पहले कदम बढ़ाता है वही महान बनता है। जिसने चांद पर पहला कदम रखा वह महान हो गया और आज पूरी दुनिया उसे ही याद करती है। क्षमा याचना करने से पूर्व मन में किसी भी तरह का संकोच भाव नहीं रखें। पहले आप कदम बढ़ाएंगे तो दूसरा अपने आप ही आपके सामने चल कर आएगा। जो झुकता है उसे ही दुनिया नमस्कार करती है। झुकने वाला ही सब में लोकप्रिय होता है। इसलिए इस संवत्सरी महापर्व पर खुले मन से अपने भीतर की भावना से मिच्छामी दुक्कड़म कहकर क्षमा याचना करने से आत्मा भी पवित्र होती है। पर्यूषण महापर्व के आठ दिनों तक सभी ने आत्म कल्याण का मार्ग अपनाते हुए प्रतिक्रमण के साथ अपनी आत्मा को निर्मल किया है। धर्मसभा में सभी मुनियों ने अपने अपने प्रवचनों के साथ ही मिच्छामी दुक्कडम बोलकर अपने क्षमा याचना के भाव प्रकट किए।