आनंद भरी दस साल की जिंदगी जीना अति उत्तम - राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी

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Published on : 10 Dec, 23 03:12

चिंता, तनाव और अवसाद भरी सौ साल की जिंदगी जीने की बजाय आनंद भरी दस साल की जिंदगी जीना अति उत्तम - राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी

आनंद भरी दस साल की जिंदगी जीना अति उत्तम - राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी

उदयपुर,  राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि  चिंता, तनाव और अवसाद भरी सौ साल की जिंदगी जीने की बजाय आनंद भरी दस साल की जिंदगी जीना अति उत्तम है। रोज-रोज न तो मिठाइयाँ खाई जा सकती है और न ही खिलाई जा सकती है, पर जीवन को तो हमेशा के लिए अवश्य मीठा बनाया जा सकता है। यह तो व्यक्ति पर निर्भर है कि वह खटास भरी जिंदगी जिए या मिठास भरी। अगर हम बुरे वक्त को याद करते रहेंगे तो दुखी हो जाएंगे और वक्त का सदूपयोग करना शुरू कर देंगे तो सुखी हो जाएंगे। उन्होंने क हा कि भगवान रोज धरती पर से एक लाख लोगों को ऊपर उठाता है, पर उसमें हमारा नंबर नहीं लगाता, वह सबको भूखा उठाता है, पर किसी को भूखा सुलाता नहीं है और हमें हमारे भाग्य से ज्यादा देता है इसलिए सुबह उठकर उससे शिकायत या याचना करने की बजाय उसे साधुवाद और धन्यवाद दीजिए।
संतप्रवर शनिवार को श्री जैन श्वेतांबर जिनालय समिति द्वारा हिरण मगरी सेक्टर 4 जैन मंदिर के प्रांगण में आयोजित प्रवचन समारोह में संबोधित कर रहे थे। राष्ट्र-संत ने कहा कि हममें और दूसरे संतों में ज्यादा फर्क नहीं है। सभी संत स्वर्ग का रास्ता दिखाते हैं, पर दूसरे संत अगले जन्म में स्वर्ग पाने की बात कहते हैं और हम इसी जन्म को स्वर्ग बनाते हैं। हमारी बातें न तो आसमान में बने स्वर्ग को पाने की है न ही पाताल में बने नरक से बचने की है वरन् इसी जीवन में स्वर्ग को पैदा करने की है। उन्होंने कहा कि जीवन परमात्मा की ओर से मिला हुआ हमें बेशकीमती उपहार है। हम इसे विषाद नहीं प्रसाद बनाएं। पूनम का चांद उगने वाले आसमान में भी अमावस की कालिमा आ जाती है अर्थात् विपरीत परिस्थितियां सबके जीवन में आती है इसलिए व्यक्ति हर परिस्थिति को प्रभु का प्रसाद माने और बदहाल बनकर जीने की बजाय खुशहाल बनकर जिए।
स्वभाव का सरल बनाएं-जीवन में मिठास घोलने का पहला मंत्र देते हुए संतप्रवर ने कहा कि स्वभाव को थोड़ा सरल बनाने की कोशिश करें। सरल स्वभाव वाले को पड़ोसन भी पसंद करती है और कड़वे स्वभाव वाले को घरवाली भी पसंद नहीं करती। अगर आप गुस्सैल हैं तो घर वाले आपके घर से बाहर जाने पर खुश होंगे और आप शांत हैं तो घर वाले आपके घर आने पर खुश होंगे सोचो, आप घर वालों को किस तरह खुश रखना चाहते हैं। उन्होंने शादी करने वाले युवक-युवतियों को सलाह दी कि वे रंग की बजाय स्वभाव पर ध्यान दें। गुस्सैल पत्नी अगर गौरी भी होगी तो दो दिन अच्छी लगेगी, पर शांत पत्नी काली भी होगी तो जीवन भर सुख देगी।
रंग की बजाय ढंग से महान बनें-संतप्रवर ने कहा कि व्यक्ति काला है या गौरा, इसमें न तो उसकी कोई खामी है और न ही कोई खासियत। क्योंकि रंग खुद से नहीं माँ-बाप से प्राप्त होता है। व्यक्ति रंग को तो बदल नहीं सकता, पर जीवन जीने के ढंग को बदलकर अवश्य महान बन सकता है। उन्होंने कहा कि गौरे लोग दिन में दस बार आइना जरूर देखें और प्रेरणा लें कि जैसा मेरा रंग है मैं काम भी उतने ही सुंदर करूंगा और काले लोग दिन में बीस बार आइना देखें और सोचें कि भगवान ने चेहरा सुंदर नहीं दिया तो क्या हुआ मैं काम बहुत सुंदर करूंगा और दुनिया में महान बनूंगा।
ज्यादा सिरपच्चियाँ न पालें-मिठास घोलने का दूसरा मंत्र देते हुए संतप्रवर ने कहा कि बूढ़े लोग घर में इसलिए दुखी रहते हैं कि वे बेवजह की सिरपच्चियाँ मोल लेते रहते हैं। अगर बड़े-बुजुर्ग टोकाटोकी करना बंद कर दे तो दुनिया में ऐसा कोई भी बेटा-बहू नहीं है जो माँ-बाप से अलग घर बसाकर रहना चाहे। उन्होंने सासुओं से कहा कि वे जितना ध्यान बहुओं का रखती है अगर उतना ध्यान भगवान का रखना शुरू कर दे तो उन्हें मोक्ष मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि हमसे तो वे पंछी कही ज्यादा अच्छे हैं तो पंख लगते ही बच्चों को खुला छोड़ देते हैं, पर हम जीवनभर बच्चों की सिरपच्चिया करते रहते हैं। जिंदगी की गणित बताते हुए उन्होंने कहा कि हम सोमवार को जन्में, मंगल को स्कूल गए, बुध को बड़े हुए, गुरू को शादी हुई, शुक्र को बच्चे हुए, शनि को बीमार पड़े और रवि को राम-राम सत् हो गया। हमारी इतनी तो छोटी-सी जिंदगी है फिर हम क्यों व्यर्थ की माथाफोडियों में हाथ डालते रहते हैं।
खुश रहने की आदत डालिए-मिठास घोलने का तीसरा मंत्र देते हुए संतप्रवर ने कहा कि इच्छाएं कम कीजिए और इच्छाशक्ति बढ़ाने की कोशिश कीजिए ताकि हम आगे बढ़ सकें। उन्होंने युवाओं से कहा कि आपको जिंदगी में जो पसंद है उसे हासिल कीजिए और बुजुर्ग लोग जो हासिल है उसे पसंद करना शुरू कर दे तो ज्यादा ठीक रहेगा। उन्होंने कहा कि आपके पास मकान है, बैंक बेलेंस है, वाइकल है, पत्नि है फिर भी आप दुखी हैं और मेरे पास कुछ भी नहीं है फिर भी मैं सुखी हूँ। सुख का राज इतना सा है कि अगर हमारे पास केवल झौपड़ी है तो भी खुश रहें कि क्योंकि कइयों के पास तो छत भी नहीं है और कभी पाँवो में जूते भी न रहे ऐसी नौबत आ जाए तो भी हर हाल में खुश रहना क्योंकि दुनिया में लाखों लोग ऐसे हैं जिनके पास पाँव ही नहीं है।
मुस्कान को बनाए रखे-मिठास घोलने का अंतिम मंत्र देते हुए संतप्रवर ने कहा कि सदा मुस्कुराते हुए जिएं। जो मुस्कुराता है समझना वो जिंदा है अन्यथा जिंदा आदमी भी मुर्दे से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि हम मात्र दो सेकण्ड मुस्कुराते हैं तो फोटो सुंदर आता है सोचो अगर हम हर पल मुस्कुराएंगे तो जिंदगी कितनी सुंदर बन जाएगी। उन्होंने सभी श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि वे सदा मुस्कुराने की आदत डाल लें। अगर यहाँ का हर व्यक्ति मुस्कुराते हुए जिएगा तो यह शहर शहर नहीं रहेगा हँसता-मुस्कुराता हुआ गुलाब का फूल बन जाएगा।
इससे पूर्व राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ महाराज, राष्ट्र-संत ललितप्रभ महाराज और डाॅ. मुनि शांतिप्रिय सागर महाराज के हिरण मगरी आगमन पर श्रद्धालु भाई बहनों द्वारा भव्य स्वागत किया गया।
कार्यक्रम में सुशील बांठिया, अशोक नागोरी, चेतन लाल दोशी, हितेश बाफना, दिनेश कोठारी, दिलखुश पीतलिया, उत्सव लाल जगावत, ईश्वर मेहता और शांतिनाथ युवा मंडल के सभी सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे।
रविवार को टाउन हॉल के सुखाड़िया रंग मंच में राष्ट्र संतों का अंतिम कार्यक्रम विदाई समारोह सुबह 9:15 बजे से 12:15 बजे तक आयोजित होगा जिसमे राष्ट्र संत उदयपुर के नाम अपना अंतिम संबोधन याद रहेगा उदयपुर याद रखेगा उदयपुर विषय पर देंगे। इस अवसर पर श्रद्धालु गुरुजनों को विशेष विदाई देंगे। चातुर्मास के सभी लाभार्थियों का अभिनंदन होगा। कार्यक्रम के अंत में सुख शांति और समृद्धि की अभिवृद्धि के लिए महा मंगलिक समारोह और गुरु प्रसाद जी का आयोजन होगा। गुरु भक्तों के द्वारा भक्ति नृत्य और विदाई भजनों की विशेष प्रस्तुति दी जाएगी।


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