मायड़ भाषा दिवस की पूर्वसंध्या पर साहित्यिक आयोजन " बातां मायड़ भाषा की "

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Published on : 21 Feb, 24 02:02

राजस्थानी भाषा को व्यवसाय की भाषा बनाने की जरूरत है। " मुकुट मणिराज 

मायड़ भाषा दिवस की पूर्वसंध्या पर साहित्यिक आयोजन " बातां मायड़ भाषा की "

 दादा बाड़ी सी ए डी ग्राउण्ड में स्थित राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा में विश्व मायड़ भाषा दिवस के उपलक्ष्य में एक दिवसीय वरिष्ठ साहित्यकारों से युवा कवियों की साहित्यिक वार्ता के लिए " बातां मायड़ भाषा की " का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि मुकुट मणिराज पूर्व सदस्य कैन्द्रीय राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के सदस्य " हम अपनी भाषा को बोलने में छोटा महसूस करते हैं, सत्तर साल से हम हिन्दी बोल रहें हैं, हमारे बच्चे जब राजस्थानी भाषा बोलते है तो हम उन्हें टोकते है, यह विचारनीय हैं,सबसे पहले प्रश्न आता है कि कौनसी राजस्थानी की बात सामने आतीं है, आप जो भाषा बोलते है वही मायड़ भाषा हैं। आप हिन्दी भाषा या अन्य भाषाओं में पढ़ाते समय अपने संवाद में मातृ भाषा में जोड़ने की जरूरत है‌। हमें व्यवसाय की भाषा बनाने की जरूरत है। " 

अध्यक्षता विश्वामित्र दाधीच लोकप्रिय गीतकार " भाषा राज से चलती है, "यथा राजा तथा प्रजा " हमारी मांं हाड़ौती बोलती थी, लेकिन वर्तमान माँता हाड़ौती में बहुत कम बोलतीं है, नारी शक्ति को मायड़ भाषा के जागरूकता जररी है। संचालन नहुष व्यास ने किया‌। सर्वप्रथम मंचस्थ अतिथियों द्वारा माँ शारदे के समक्ष द्वीप प्रज्ज्वलन से हुआ। सरस सरस्वती वंदना सुरेश पण्डित " सरस्वती मैया म्हारा सुर में सुर अणादे " किशन वर्मा " जारी बोली प्यारी लागें", स्वागत ने वंदना की। स्वागत उद्वबोदन पुस्तकालयध्यक्ष डॉ दीपक श्रीवास्तव ने कहा कि " आप सभी पधारे बहुत अच्छा लगा, कितनी बड़ी विडम्बना है कि राजस्थानी भाषा के लिए पूर्व सरकारों ने कहा था कि डबल इंजन की सरकार है, तो हमें पूरी उम्मीद है कि अब राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलेगी, अगर राजस्थान का विकास चाहिए तो हमें राजस्थानी भाषा की मान्यता जरूरी है। हमें चाहिए कि सच्चे मन से कानूनी रूप से हमें मान्यता मिलें। हमें मान्यता के लिए धरातल पर कार्य करने की जरूरत है। हमें अपनी मातृ भाषा में अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग से बचने की जरूरत है। " युवा कवि राजेन्द्र पंवार ने कहा कि " हमारी मजबूरी हो सकती है, कोन्वेन्ट विद्यालय में पढ़ाना, लेकिन घर में अपनी मातृ भाषा का बोलचाल जरुरी है। हुकम चन्द जैन " प्रोस्ट कार्ड को माध्यम से जागृति लाई जा सकतीं है, मेल के माध्यम से भी यह कार्य किया जा सकता है‌"। बालू राम वर्मा ने कहा कि " हम सभी गाँवों से शहर में आये है, हमें हमारी मायड़ भाषा का संवाद का माध्यम बनतीं थीं, वर्तमान में यह कल्चर बन गया है, हम अपनी भाषा को ही छोटा समझने लगे हैं। यह विचारनीय हैं। " नन्द सिंह पंवार " मायड़ भाषा के बिना हम अधूरा जीवन जी रहे हैं। " किशन वर्मा, " अगर हम घर में मायड़ भाषा को स्थान नहीं दे सकते तो हमें विचार करना पड़ेगा, यह आज की भाषा नहीं है, यह बहुत पुरानी होतें भी मान्यता के लिए तरस रहीं हैं, अगर मान बढ़ाना है तो अपनी भाषा में ही सृजन करें‌।वरदान सिंह हाड़ा ने कहा कि " हाड़ौती बहुत समृद्ध भाषा है, इसके सीधे संवाद के अलग ही आनन्द है। " सुरेश पण्डित ने कहा कि " मायड़ भाषा की जानकारी हमें होगी तो हम ज्यादा से ज्यादा है, योगी राज योगी ने कहा कि मायड़ भाषा जब जिन्दा रहें गी जब हमारे संवाद जिन्दा रहेगी, हमेंंकल्पित होने की जरूरत है। " बिगुल कुमार जैन ने कहा कि " हम देखते हैं कि मारवाड़ में परिवार में आपसी संवाद अपनी भाषा में करते हैं। प्रताप सिंह " हमें आपसी तालमेल की जरूरत है। " हाड़ौती अंचल का राजस्थानी साहित्य पर युवा कवि नहुष व्यास ने बताया कि, " वर्तमान में हाड़ौती अंचल का राजस्थानी साहित्य समृद्ध है, राजस्थानी भाषा की पुस्तकों की संख्या दो सो पार कर चुकीं है, इसमें गद्य और पद्य दोनों शामिल है, यह हमारे लिए अत्यन्त हर्ष का विषय है। आज के पांच दशक पहले तक हाड़ौती बोलने वालों की संख्या काफी थीं। अठारहवीं शताब्दी के श्री रामपुर के ईसाई मिशनरियों द्वारा " न्यू टेस्टामेंट " का अनुवाद हाड़ौती गद्य में करवाया था, इसका अनुवाद भी उसी तरह है जैसा डॉ ग्रियर्सन के भाषा सर्वेक्षण में हाड़ौती कथाओं का है।  हाड़ौती अंचल के इतिहास को अगर हम खंगाले तो यहाँ के राजा महाराजाओं ने भी हाड़ौती में लेखन किया है।  आजादी के पश्चात् अब तक दो सो के करीब पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। आज भी सैकड़ों कवि इसमें लेखन कर रहे हैं, यह मंचीय और साहित्यिक दोनों ही क्षेत्र में हैं। इस साहित्यिक यात्रा में महिला रचनाकार भी पीछे नहीं है,  सहायक पुस्तकालयध्यक्ष शशि जैन ने आभार व्यक्त किया। 

कार्यक्रम में  लोकेश मृदुल एवं आर सी आदित्य की उपस्थिति कार्य क्रम की शोभा बड़ा रहे थे।


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