देश के दो प्रदेशों हरियाणा और जम्मू जश्मीर में विधान सभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और सभी राजनीतिक दल के प्रत्याशी सीना तान एक दूसरे के सामने खड़े है। जाहिर हैं सभी राजनीतिक दलों ने अपने अपने स्टार प्रचारकों की फ़ोज भी खड़ी कर दी हैं।
राजस्थान के पड़ौसी प्रदेश हरियाणा का जंग इसलिए दिलचस्प हो गया है कि वहाँ हरियाणा चुनाव में भी राजस्थान भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज आमने सामने हैं । भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान के पूर्व भाजपा अध्यक्ष डॉ सतीश पूनियाँ को प्रदेश प्रभारी बनाया है तथा दो केन्द्रीय मंत्रियों केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को भी विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों की ज़िम्मेदारियाँ दी हैं। साथ ही हाल ही घोषित स्टार प्रचारकों की सूची में पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को भी शामिल किया गया है। इस प्रकार जाट प्रधान हरियाणा में बीजेपी ने राजस्थान के जाट, क्षत्रिय और दलित क्षत्रपों के साथ ही महिला नेत्री के रूप में वसुन्धरा राजे को भी आगे कर दिया है।
वहीं कॉंग्रेस ने भी राजस्थान के पूर्व मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत को हाल ही हरियाणा प्रदेश का सीनियर चुनाव आब्जर्वर बनाया है। साथ ही सचिन पायलट और अन्य नेताओं को भी चुनावी ज़िम्मेदारी दी गई है। अशोक गहलोत पिछलें लोकसभा चुनाव के दौरान पंजाब में चुनाव प्रचार के दर्मियान स्लिप डिस्क के शिकार हो गए थे और उसके बाद वे लंबे समय तक बेड रेस्ट पर चले गए। अब लगभग 100 दिन के बाद वे पुनः सक्रिय राजनीति में सक्रिय हुए है और अब उन्हें हरियाणा की जिम्मेदारी दी गई है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा सहित हरियाणा कांग्रेस के हर नेता के साथ उनके अच्छे सम्बन्ध है। कांग्रेस हाई कमान गहलोत की राजनीतिक जादूगरी का करिश्मा गुजरात, उत्तर प्रदेश सहित केरल तक देख चुका हैं। इसलिये इस बार भी उन्हें हरियाणा में पार्टी की जीत की संभावनाओं को शत प्रतिशत अंजाम देने की दृष्टि से उनकी सेवाओं को फिर से ले रहा हैं। गहलोत ने भी सीनियर चुनाव आब्जर्वर बनते ही सभी राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेताओं से मिलना शुरू कर चुनावी राजनीतिक रणनीति बनाना शुरू कर दिया है।वहीं, बीजेपी ने भी वसुंधरा राजे को स्टार प्रचारक बना नहले पर दसवां चला है। ये दोनों नेता इस बार लोकसभा के चुनाव में राजस्थान की कुछ सीटों तक ही सिमटे रहे। वसुंधरा राजे अपने पुत्र दुष्यन्त सिंह की झालावाड सीट पर ही डटी रहीं। राजस्थान की अन्य सीटों पर इन्हें न तो पार्टी ने भेजा और न ही ये दिखे, जबकि बीते 25 साल में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी भी चुनाव में इन दोनों नेताओं की बड़ी भूमिका न रही हो। कांग्रेस ने अशोक गहलोत को फिर क्यों किया सक्रिय? इस सवाल के जवाब में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद से अशोक गहलोत का खेमा कमजोर होने लगा था फिर, लोकसभा चुनाव में जोधपुर के बाद जालोर सीट से भी गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत की हार हुई और गहलोत गुट के नेता गण प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा को छोड़ कर ज़्यादा सक्रिय नहीं दिखें जबकि सचिन पायलट गुट के नेता अधिक सक्रिय नजर आयें। कांग्रेस के लिए राजस्थान में खेमेबाजी दूर करना एक बड़ी चुनौती रही है। इसलिए, बताया जा रहा है कि अशोक गहलोत को फिर से जिम्मेदारी देकर राजस्थान में खेमेबाजी पर लगाम लगाने की कोशिश की जा रही है। क्योंकि, प्रदेश में सचिन पायलट, हरीश चौधरी, गोविंद सिंह डोटासरा और टीकाराम जूली आदि नेताओं के भी अपने गुट बन चुके हैं। इससे आने वाले विधानसभा उप चुनाव में पार्टी की जीत की संभावनाओं पर गलत असर पड़ सकता है।
भाजपा ने वसुंधरा राजे के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की है कि प्रदेश में खेमेबाज़ी को दूर किया जा रहा है। दरअसल, पिछले दिनों वसुन्धरा के नजदीकी रहें मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष और दिग्गज भाजपा नेता ओम प्रकाश माथुर को सिक्किम का राज्यपाल बनाया गया। दोनों राजस्थान बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं। बीजेपी ने अब वसुंधरा राजे को हरियाणा में स्टार प्रचारक बनाकर एक बड़ा संदेश दिया है। सूत्रों का कहना है कि राजस्थान में बीजेपी आने वाले विधानसभा उप चुनाव और स्थानीय निकायों के चुनावों को देखते हुए अपने सभी अपने वरिष्ठ नेताओं को कोई न कोई बड़ी जिम्मेदारी देने के पक्ष में है। यहां पर वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी देकर बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों में एक बड़ा संदेश देने की तैयारी में हैं ताकि प्रदेश में खेमेबाजी खत्म हो सके और नए नेताओं को आगे बढ़ने का अवसर मिल सके।
फिलहाल हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के लिए घमासान जारी है। सभी पार्टियों ने यहां पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। बीजेपी ने 90 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे है, तो कांग्रेस ने 89 प्रत्याशियों की घोषणा की है। वहीं बात करें आम आदमी पार्टी (आप) की तो उसने यहां पर 90 सीटों पर प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे है। हरियाणा में इस बार 5 बड़े राजनीतिक दल चुनाव मैदान में नजर आ रहें हैं।कांग्रेस और बीजेपी के अलावा जेजेपी, आईएनएलडी और आम आदमी पार्टी भी इस चुनावी रण में ताल ठोक रही है। आम आदमी पार्टी का कांग्रेस से चुनावी गठबन्धन नहीं होने से यहाँ बहुकोणीय मुक़ाबलों की संभावनायें बढ़ गई हैं। हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए 5 अक्टूबर को वोटिंग होगी,जबकि चुनाव परिणाम 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के बीच केजरीवाल का दिल्ली की तिहाड़ जेल से रिहा होना कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन सकता है और बीजेपी को हरियाणा में इसका चुनावी लाभ भी मिल सकता है क्योंकि केजरीवाल के जेल से बाहर आने से हरियाणा की आप पार्टी के हौसले बुलंद हुए हैं। हरियाणा में कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन नहीं हो पाया है। ऐसे में अब आप के उम्मीदवार कांग्रेस के प्रत्याशियों के सामने खड़े हैं। आप के कारण कांग्रेस के वोट कटने तय माने जा रहे हैं,हालांकि आप पार्टी नुकसान बीजेपी का भी करेगी लेकिन कांग्रेस का ज्यादा हो नुकसान हो सकता है। इधर जिंदल परिवार के दो ख़ेमों में बंटने से भाजपा को भी नुक़सान होने की संभावना हैं।
उधर भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अन्य बड़े नेताओं की चुनावी रैलिया करवा प्रदेश में सरकार के खिलाफ एंटी इंक़मबेंसी तथा किसानों और जाटों की नाराज़गी दूर करने के प्रयास में धुँआधार प्रचार के साथ जुटी हुई हैं। कांग्रेस का हरियाणा में भाजपा की जाट विरोधी नीति पर आक्रामक होना जारी हैं। वही इसकी काट में भाजपा नेताओं का कहना है कि कांग्रेस ने तो राजस्थान में कभी जाट मुख्यमंत्री ही नहीं बनने दिया जबकि भाजपा ने प्रदेश में धौलपुर जाट राजघराने की वसुन्धरा राजे को दो बार मुख्यमंत्री बनाया हैं।
देखना है हरियाणा चुनाव में भी राजस्थान भाजपा और कांग्रेस के इन दिग्गजों के आमने सामने होने की रणनीति इस चुनाव में और क्या गुल खिलाती है?