उदयपुर, वायु प्रदूषण न केवल श्वसन समस्याओं का कारण बन रहा है, बल्कि हृदय रोग और डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों के बढ़ने का भी प्रमुख कारण है। विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण हमारे शरीर में सिर्फ श्वसन तंत्र के माध्यम से नहीं, बल्कि त्वचा के द्वारा भी अवशोषित हो रहा है, जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
कई रिपोर्ट्स के अनुसार, राजस्थान में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या देश में सबसे अधिक है। घरों के भीतर और बाहर दोनों जगह वायु प्रदूषण तेजी से फैल रहा है। कार्बन कणों और हानिकारक गैसों के अलावा, पुराने समय के वेंटिलेशन सिस्टम की कमी, एसी, फ्रिज, और वाहनों के अधिक उपयोग से वायु का तापमान भी बढ़ रहा है। ऐसे में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तर पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
यह विचार पीजीआई चंडीगढ़ के प्रमुख पर्यावरणीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. रविंद्र खाईवाल और पंजाब विश्वविद्यालय की पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सुमन मोर ने विद्या भवन पॉलिटेक्निक में आयोजित सेमिनार में व्यक्त किए। इस सेमिनार का आयोजन आईएसटीई, आईईआई विद्यार्थी चेप्टर, पर्यावरण संरक्षण गतिविधि इको क्लब और राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा किया गया था।
डॉ. खाईवाल और डॉ. मोर ने कहा कि धूल और धुएं जैसे वायु प्रदूषकों से निपटने के लिए सड़कों के किनारों पर टाइलिंग और एंटी-स्मॉग स्प्रिंकलिंग जैसे उपाय स्थाई समाधान नहीं हैं। इसके बजाय, सड़कों के किनारों पर घास और पौधों का उपयोग करना अधिक उपयुक्त है। वायु प्रदूषण के स्रोतों और उनके प्रवाह पथ को नियंत्रित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सेमिनार में ग्रीन पीपल सोसायटी के अध्यक्ष राहुल भटनागर, पूर्व डीएफओ सोहेल मजबूर, और अन्य पर्यावरणविदों ने भी वायु प्रदूषण के जल और भूमि स्रोतों पर गंभीर प्रभाव पर चर्चा की। विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर संकट बन चुका है और इसके नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
इस अवसर पर विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने सेमिनार का संयोजन किया।
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