राम लक्ष्मण की जोड़ी दौसा और प्रभाव क्षेत्र वाली सीटों पर खिला पायेगी कमल

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Published on : 04 Nov, 24 07:11

राजस्थान की राजनीति में इन दिनों दो भाइयों की जोड़ी काफ़ी चर्चा में हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक इन्हें राम लक्ष्मण को जौड़ी कहते है। 

यह जोड़ी है राजस्थान के भजन लाल सरकार के सबसे वरिष्ठ मन्त्री और क़द्दावर मीणा नेता डॉ किरोड़ी लाल मीणा और उनके छोटे भाई रिटायर्ड आरएएस अधिकारी जगमोहन मीणा की। जगमोहन मीणा राजस्थान में हो रहें उप चुनाव में दौसा से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हैं। जगमोहन मीणा ने दस वर्ष पहले सरकारी सेवा से वीआरएस लेकर राजनीति में प्रवेश किया था । वे  डॉ किरोड़ी लाल मीणा के चुनाव प्रबन्धन का सारा काम देखते थे और चुनाव कार्यों के बाद लोगों के शिकवे शिकायतों और समस्याओं का समाधान कराना भी उन्हीं के कन्धे पर रहता था। उनके भरौसे निश्चिन्त होकर डॉ किरोड़ी लाल मीणा अपनी फायरब्रांड राजनीति करते आये हैं। पिछलें दो लोकसभा और विधान सभा चुनावों में उन्होंने अपने छोटे भाई के लिये पार्टी का टिकट माँगा लेकिन टिकट नहीं मिलने पर वे अपनी भाजपा से बहुत नाराज हो गए तथा भजन लाल मंत्रिपरिषद में अपने क़द के अनुरूप ओहदा नहीं मिलने के बहाने उन्होंने भजन लाल मंत्रीमंडल से अपना इस्तीफ़ा तक सौप दिया जो कि काफी चर्चा में रहा लेकिन अब अपने छोटे भाई को टिकट मिलने से वे बहुत खुश है तथा उनके चुनाव प्रचार में ठुमके तक लगा रहें है। भजन लाल सरकार के कैबिनेट मंत्रीपद से इस्तीफा देने के बाद डॉ किरोड़ी लाल मीणा एक दम से चर्चा में आ गए थे । इसका कारण था उनका वह वचन जो उन्होंने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को पूर्वी राजस्थान की सात लोकसभा सीटें जिताने के सम्बन्ध में दिया था लेकिन उसमें वे सफल नहीं हो पायें थे । अब वे चर्चा में है अपने भाई जगमोहन मीणा के कारण। काफी जतन के बाद किरोड़ी लाल ने अपने अनुज को दौसा से टिकट दिलाने में कामयाबी  पाई है, लेकिन उनके सामने बाधाएं और चुनौती कम नहीं है। उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई हैं। वैसे तो दौसा की विधानसभा सीट जनरल सीट है लेकिन इस पर एसटी और एस सी के उम्मीदवारों का दबदबा रहता आया है। डॉ किरोड़ी लाल मीणा स्वयं सवाई माधोपुर की जनरल सीट से विधायक है और उनके भतीजे राजेन्द्र मीणा भी महवा की सामान्य वर्ग की सीट से विधायक है।जगमोहन मीणा यदि उप चुनाव जीतते है तो दौसा तीसरी ऐसी सामान्य सीट बन सकती है जिस पर एसटी उम्मीदवार काबिज़ होंगा। वैसे पिछलें लोकसभा चुनाव में दौसा सीट से कांग्रेस के पूर्व मंत्री मुरारी लाल मीणा ने भाजपा को हराया था।

डॉ किरोड़ी लाल मीणा कहते हैं कि भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास भोग कर अयोध्या लौटे थे । इसी प्रकार मेरे भाई को दस वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के बाद पार्टी का टिकट मिला है । अब क्षेत्र के लोगों का दायित्व है कि सुख दुःख में उनके साथ रहने वाले जग मोहन को जितायें। यदि वह जीतता तो दौसा में भी असली दिवाली मनेगी और सभी मिल कर डोवठा मिठाई भी खायेंगे। डोवठा दौसा की प्रसिद्ध मिठाई है। इसका इतिहास बहुत पुराना है, जो राजा-रजवाड़ों के समय से बनती चली आ रही है। यह मिठाई अपने अनोखे स्वाद और बनावट के कारण लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है। उपचुनाव में भी डोवठा मिठाई का चलन देखा जा रहा है। दौसा की जनरल सीट पर उप चुनाव में जीत का परचम लहराने के बाद विजयी उम्मीदवार द्वारा अपने मतदाताओं और समर्थकों को राजस्थान की प्रसिद्ध डोवठा मिठाई खिलाना भी अपने आप में अलग ही बात होगी।अब देखना ये है कि उपचुनाव के प्रत्याशियों में से कौन जीत का झंडा गाढ़ने के बाद दौसा की नामी और प्रसिद्ध डोवठा मिठाई खिलाएगा?

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजस्थान में हो रहें सात उप चुनावों में पूरे उप चुनावों में डॉ किरोड़ी लाल मीणा वह एक चेहरा है जिस पर सबकी नजरे  टिकी हुई है। भाजपा ने उन्हें दौसा के अलावा देवली उनियारा विधानसभा सीट पर भी उनके प्रभाव का इस्तेमाल करने की ज़िम्मेदारी दी है।दौसा में तो उनके अनुज जगमोहन मीणा बीजेपी के टिकट पर मैदान में है ही, वहीं देवली उनियारा में उन्हें मीणा वोटों के मद्देनजर भाजपा उम्मीदवार की मदद करनी है। डॉ किरोड़ी मीणा दौसा और सवाई माधोपुर दोनों लोकसभा सीटों से विधायक रह चुके हैं। इसलिए उनके सामने इन दोनों सीटों पर कमल खिलाने की चुनौती है ।

हालाँकि दौसा की सीट पर भाई जगमोहन मीणा को हर हालत में विजय दिलाना उनकी पहली चुनौती होंगी। जनरल सीट से भाई को टिकट दिलाने के कारण सामान्य वर्ग में जो नाराजगी पनपी थी उसे देखते हुए  वे सामान्य वर्ग के वोटों पर अधिक फोकस कर रहें हैं। अब वो मतदाताओं को क्षेत्र के पुजारियों और सामान्य वर्ग के लोगों के लिए किए गए संघर्ष की याद दिला रहे है।डॉकटर साहब के सामने कांग्रेस के परंपरागत मीना वोट बैंक को साधना भी एक कठिन चुनौती हैं। उसके अलावा सचिन पायलट के प्रभाव वाले गुर्जर वर्ग के वोट बैंक को भी साधना भी कम चुनौती पूर्ण नहीं हैं।क्षेत्र में एससी और एस टी आरक्षण को लेकर भी उनके पूर्व में दिए गए बयान चर्चा में हैं और विरोधी उम्मीदवार उसे हवा दे रहें हैं।

डॉ किरोड़ी लाल मीणा हमेशा से राजस्थान की सियासत में चर्चा के केंद्र बिंदु बने हुए रहते है, चाहे पक्ष की सरकार हो या प्रतिपक्ष की सरकार । लोकसभा चुनाव में दौसा लोकसभा सीट पर 20 साल बाद फिर से कांग्रेस की जीत हुई है और इंडिया गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी मुरारी लाल मीणा ने भाजपा प्रत्याशी कन्हैया लाल मीणा को हराया है । लोकसभा चुनाव में बीजेपी को दौसा ही नहीं  पूर्वी राजस्थान की  करौली धौलपुर ,टोंक सवाई माधोपुर और भरतपुर में भी हार का सामना करना पड़ा था, जहां डॉ किरोड़ी लाल मीणा का व्यापक प्रभाव माना जाता है। बीजेपी लीडरशिप ने डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को पूर्वी  राजस्थान की सात लोकसभा सीटों की जिम्मदारी दी थी। इन सीटों सीट पर बीजेपी को मिली पराजय के कारण मंत्री पद से किरोड़ी लाल मीणा ने अपना त्यागपत्र दिया । उन्होंने घोषणा की थी कि दौसा और इन लोकसभा सीट पर बीजेपी हारी तो मैं मंत्री पद छोड़ दूंगा। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा और अन्य शीर्ष नेताओं से मिलने के बाद उनके तेवर नरम पड़े थे।दौसा के रोड शो में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें अपने साथ रखा था।डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के त्यागपत्र का यह एक बड़ा कारण था।हालाँकि उनके समर्थक कहते है कि विधानसभा चुनाव में डॉ किरोड़ी लाल मीणा के प्रभाव से  मीणा विधायक अच्छी संख्या में विधानसभा चुनाव में जीते थे फिर भी उन्हें ना तो उपमुख्यमंत्री बनाया गया और उनके कद के मुताबिक विभाग भी नही दिये गये।

इन सभी बातों से अलग अब डॉ किरोड़ी लाल मीणा का सारा फ़ोकस अपने भाई जगमोहन मीणा को चुनाव में जिताना हैं। उनके लिए यह किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं हैं।

 डॉ किरोड़ी लाल मीणा भारतीय जनता पार्टी के एक कद्दावर आदिवासी नेता है और छात्र जीवन से ही राजनीति में हैं। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से तृतीय वर्ष शिक्षित हैं।वे विद्यार्थी परिषद में भी रहे और आगे चलकर बीजेपी के हरावल दस्ते युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्होंने पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस के परंपरागत मीणा वोट बैंक को बीजेपी से जोड़ने में बड़ा योगदान दिया। वे अपनी संघर्षशील छवि को हमेशा अपनाए रखते हैं। वे शुरुआती सियासत में सवाई माधोपुर के सीमेंट फैक्ट्री के कारण चर्चित हुए थे। उन्होंने भाजपा में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार से अनबन के चलते पलटा खाते हुए अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार में अपनी पत्नी गोलमा देवी को मंत्री तक बनवा दिया था। साल 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने पीए संगमा की पार्टी का दामन थामा और राज्य में करीब 122 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे।तब चार सीटों पर राजपा ने जीत भी दर्ज की थी। 10 साल तक पार्टी से बाहर रहने के बाद 2018 में उनकी भाजपा में वापसी हुई। दौसा से अकेले दम पर जग के चुनाव चिन्ह पर डॉ किरोड़ी लाल मीणा लोकसभा का चुनाव भी जीत चुके है वो भी निर्दलीय के रुप में।वहीं अब फिर से भाजपा से जुड़ कांग्रेस की पिछली गहलोत सरकार के दौरान शिक्षक भर्ती समेत विभिन्न परीक्षाओं की धांधलियों तथा राजस्थान लोकसेवा आयोग से जुड़े करप्शन को सामने लाने में अहम भूमिका निभाई।

डॉ किरोडी लाल मीणा को भारतीय जनता पार्टी में संघर्ष के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है लेकिन भाजपा में अब शीर्ष नेतृत्व किसी प्रकार के दवाब की राजनीति को स्वीकार नहीं करता है यही वजह है कि शीर्ष नेतृत्व डॉ मीणा के मंत्री पद से त्यागपत्र के दवाब में नहीं आया और अनतोत्गत्वा उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया। अलबत्ता अपने जुझारू नेता की माँग को स्वीकार कर पार्टी ने उनके भाई को उप चुनाव में टिकट अवश्य दिया हैं लेकिन अब सारा दवाब डॉ किरोडी लाल मीणा के सामने एक चुनौती की तरह है। यदि वे दौसा उप चुनाव में अपने अनुज जगमोहन मीणा और  उनियारा देवली सीट पर भी पार्टी उम्मीदवार को विजय दिलाते हैं तो निश्चित रूप से जीता तो नायक माने जाएँगे वरना भाजपा की कसौटी पर आने से भी नहीं बचे रहेंगे।अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राम और लक्ष्मण की यह जोड़ी दौसा और अपने प्रभाव क्षेत्र वाली अन्य सीटों पर कमल खिला पायेगी


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