रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ हुआ आगाज राजस्थानी, पंजाबी, रिमिक्स गानों पर जमकर दी प्रस्तुतियाॅ

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Published on : 15 Dec, 24 08:12

रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ हुआ आगाज राजस्थानी, पंजाबी, रिमिक्स गानों पर जमकर दी प्रस्तुतियाॅ


उदयपुर  राजस्थान विद्यापीठ के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की ओर से शनिवार को महाविद्यालय के सभागार में आयोजित वार्षिकोत्सव 2024 का आगाज कुलपति कर्नल प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत, मुख्य अतिथि जल पुरूष डाॅ. राजेन्द्र सिंह, विशिष्ठ अतिथि अन्तर्राष्ट्रीय फिजियोथेरेपिस्ट डाॅ. महेन्द्र यादव, प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग, डाॅ. बलिदान जैन, डाॅ. सुनिता मुर्डिया, डाॅ. रचना राठौड़, डाॅ. अमी राठौड़ ने माॅ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि एवं दीपदान कर किया।
वार्षिकोत्सव के नाम के अनुरूप ही विद्याार्थियों ने भारतीस संस्कृति के विभिन्न रूपों को जीवन्त करते हुए रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुुतियां दी गई, जिसकी शुरूआत गणपति वंदना, कालबेलिया नृत्य,  राजस्थानी लोक नृत्य, गुजराती गरबा, कत्थक सहित भगवान राम के जीवन पर आधारित नृत्य नाटिका व कलकी अवतार नृत्य जैसी प्रस्तुतियां दे उपस्थित अतिथि एवं दर्शकों को मंत्रमूग्ध कर दिया।

महाविद्यालय द्वारा आयोजित मेहंदी, सलाद डेकोरेशन, एकल गीत, विचित्र वेशभूषा, आशुभाषण, रंगोली, फेस पेंटिंग, काव्य पाठ, वन मिनट गेम, केश सज्जा, नेल आर्ट, मांडना, एकाभिनय, युगल नृत्य विराउट गैस कुकिंग, प्रश्नोत्तरी, समूह नृत्य, समूह लोक गीत, पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता में विजयी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र एवं स्मृति चिन्ह से सम्मानित करते हुए कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने भावी शिक्षकों का आव्हान किया कि शिक्षक समाज का राॅल माॅडल होते है और देश के निर्माण का जिम्मा भी शिक्षकों पर ही है वे ही भावी पीढ़ी को तैयार करते है। उन्होंने कहा कि देश को 2047 तक पुनः विश्व गुरू बनाना है।
मुख्य अतिथि जल पुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह ने विद्यार्थियों से व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ पर्यावरण और सामाजिक सांस्कृतिक विकास के आपसी संबंधों को बताते हुए शिक्षक के रूप में पर्यावरण चेतना को समाज और राष्ट्र के स्तर पर कार्य करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि आधुनिकता आनन्द प्राप्ति में बाधक होती है। अतः मशीनीकरण पर अति आश्रितता घातक है एवं अन्तः संवेदना को नष्ट करता है। वार्षिकोत्सव अगले वर्ष की तैयारी अर्थात सृजन का माध्यम होता है। यह अपनी विरासत को सहेजने, प्रचारित करने, अवलोकन करने का स्रोत भी है।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग ने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रशिक्षणार्णियों के शैक्षणिक और व्यक्तिगत उन्नित  के साथ साथ उनके भावी व्यवसायिक जीवन के लिए तैयार करने तथा उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करने के लिहाज से महाविद्यालय की ओर से ये प्रयास किये जाते है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरीश चैबीसा ने किया जबकि आभार डॉ. रचना राठौड़ ने ज्ञापित किया।
समारोह में महाविद्यालय के संकाय सदस्य सहित विधार्थियों ने जमकर लुफ्त उठाया।


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