शिक्षा से पंख मजबूत हुए, अब आकाश में ऊंची उड़ान भरो

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Published on : 21 Dec, 24 15:12

“गुरुकुल परंपरा हमारे देश की अनूठी परंपरा है, शिक्षक समर्पण भाव से बेहतर छात्रों को तैयार करें।” – माननीय राज्यपाल श्री हरिभाऊ किशनराव बागडे

शिक्षा से पंख मजबूत हुए, अब आकाश में ऊंची उड़ान भरो

उदयपुर,राजस्थान के माननीय राज्यपाल श्री हरिभाऊ किशनराव बागडे ने शनिवार को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) के 18वें दीक्षांत समारोह में शिक्षा और सांस्कृतिक धरोहर की महत्ता पर प्रकाश डाला। विवेकानंद सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के दोहों का हवाला देते हुए कहा, “बच्चों, तुमने शिक्षा ली है, तुम्हारे पंख अब मजबूत हो गए हैं। आकाश में ऊंची उड़ान भरो, सारा आसमान तुम्हारा है।” राज्यपाल महोदय ने विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में अध्यक्षीय संबोधन दिया।


भारतीय सांस्कृतिक विरासत की चर्चा करते हुए राज्यपाल ने कहा, “हमारे देश पर कई आक्रमण हुए और संस्कृति को मिटाने के प्रयास किए गए। लेकिन महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज जैसे शूरवीरों ने इसे बचाए रखा। गुरुकुल परंपरा हमारी अद्वितीय धरोहर है। ऋग्वेद और यजुर्वेद में गुरुत्वाकर्षण जैसे वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख मिलता है, जो हमारे महान ऋषियों की वैज्ञानिक सोच को दर्शाता है।”

केवल डिग्री से लाभ नहीं, बौद्धिक विकास आवश्यक

माननीय राज्यपाल ने शिक्षकों से आह्वान किया कि वे बेहतर छात्रों का निर्माण करें। उन्होंने कहा, “केवल डिग्री लेना पर्याप्त नहीं है, बच्चों की बौद्धिक क्षमता बढ़ानी होगी। समर्पण भाव से अध्यापन कराते हुए अच्छे नागरिक तैयार करें। कर्म को कभी रोकना नहीं चाहिए और ज्ञान का दान करते रहना चाहिए। बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बिना कोई भी योजना कारगर नहीं हो सकती। किसी राष्ट्र का पतन करना हो तो उसकी शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद कर दो।”


कृषि और ऋषियों की भूमि भारत

कृषि की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए राज्यपाल ने कहा, “खेतों में अन्न न होगा तो हम क्या खाएंगे? 1980 तक हमारा देश अनाज आयात पर निर्भर था, लेकिन आज अन्नदाता किसानों की मेहनत से हमारे देश में अनाज की कोई कमी नहीं है। भारत सचमुच कृषि और ऋषियों की भूमि है।”

जल संरक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता

राज्यपाल ने जल संकट की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, “जल संकट से हम सभी परिचित हैं। खेत का पानी खेत में ही रुके और जमीन के भीतर जाए, जिससे भू-जल स्तर बढ़े। पानी की बचत ही पानी का निर्माण है। मैं स्वयं एक बाल्टी पानी से स्नान करता हूं। हमें प्राकृतिक खेती को अपनाना चाहिए और किसानों को खेती से पहले तकनीकी ज्ञान उपलब्ध कराना चाहिए।” उन्होंने मेडल और उपाधियां प्राप्त करने वाले छात्रों से अपील की कि वे अगली पीढ़ी का मार्गदर्शन करें और जो ज्ञान उन्होंने अर्जित किया है, उसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं। भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के कथन को याद करते हुए उन्होंने कहा, “पढ़े-लिखे लोगों को खेती को अपने पेशे के रूप में अपनाना चाहिए।”

42 स्वर्ण पदक और 1181 उपाधियां वितरित

इससे पूर्व, माननीय राज्यपाल को सभागार पहुंचने पर गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने उनका स्वागत किया। विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने प्रोटोकॉल के अनुसार उन्हें सभागार तक पहुंचाया। कार्यक्रम में 42 छात्रों को स्वर्ण पदक और विभिन्न संकायों के 1181 छात्रों को उपाधियां प्रदान की गईं।

असम कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. अमरनाथ मुखोपाध्याय ने भी समारोह को संबोधित किया। कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने स्वागत उद्बोधन में विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को प्रस्तुत किया। दीक्षांत समारोह में विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, उदयपुर सांसद डॉ. मन्नालाल रावत, बेंगू विधायक सुरेश धाकड़, एमपीयूएटी प्रबंधन मंडल के सदस्य, अकादमिक परिषद के सदस्य, टीचिंग एवं नॉन टीचिंग स्टाफ, छात्र-छात्राएं और उनके परिजन उपस्थित रहे।


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