विश्व विरासत दिवस 18 अप्रैल पर कब बहुरेंगे हाड़ोती विरासत के दिन........

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Published on : 19 Apr, 25 03:04

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल लेखक एवं पत्रकार, कोटा

विश्व विरासत दिवस 18 अप्रैल पर कब बहुरेंगे हाड़ोती विरासत के दिन........

कल सांय जब मित्र पुरुषोत्तम पंचोली की राजकीय महाविद्यालय भवन विरासत की बदहाली की कहानी पढ़ी जो कई विद्वानों के इस भवन में आगमन की गौरव गाथा सुना रही थी । पढ़ते - पढ़ते याद हो आया कितने सटीक मौके पर लिखा जब 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस है। सोचे जब शहर की विरासत का यह हाल है तो उन प्राचीन विरासतों का क्या होगा जो हाड़ोती अंचल में 8 वीं से 12 वीं सदी के बीच आजादी के 77 साल बाद भी अपने गौरव पर आंसू बहा रही है। अनेक किले, मंदिर, गुफाएं, छतरियां, बावड़ियां घोर उपेक्षा के शिकार है। जर्जर अवस्था को पहुंची इस विरासत की बदहाली पर शर्म से सिर झुक जाता है। 
कई मुख्य मंत्री बनाने । भैरोसिंह शेखावत प्रथम बार छबड़ा से जीत कर मुख्यमंत्री बने तो वसुंधरा राजे झालरापाटन से जीत कर तीन बार मुख्यमंत्री बनी। भैरोसिंह जी के समय काकोनी पर एक डॉक्यूमेंट्री बनवाई गई तथा प्रथम बार राजस्थान दिवस पर राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में हाड़ोती विरासत की प्रदर्शनी लगाई है। वसुंधरा जी के समय झालावाड़ का गागरोन किला यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल किया गया तथा झालावाड़ और बारां में पैनोरमा बनाए गए। अंचल की पुरातत्व विरासत को संरक्षित करने के लिए किए गए प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा जैसा रहा।
संरक्षण के लिए बनी योजनाओं में बहुत ज्यादा कुछ नहीं हो पाया।  रियासत के समय में सर्वेक्षण हुआ और मूर्तियां कोटा और झालावाड़ के संग्रहालयों में संरक्षित की गई। बाद में बूंदी और बारां जिला मुख्यालयों पर भी संग्रहालय बने। इन संग्रहालयों की सूरत समय - समय पर अवश्य सुधारी गई। इसी बीच मंदिरों से कई मूर्तियां चोरी होती गई। पुरातत्व विभाग के पास हमेशा सुरक्षा कर्मियों का अभाव बना रहा और आज भी है।
     ऐसा नहीं कि विरासत की बदहाली पर किसी ने ध्यान आकर्षित नहीं किया। उपेक्षित हाड़ोती की विरासत के बारे में 70 -80 के दशक में मैं स्वयं प्रभात कुमार सिंघल, प्रेम जी प्रेम, रामकुमार, फिरोज अहमद, झालावाड़ के ललित शर्मा आदि ने देश के सभी राज्य और राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं में ताबड़तोड़ लिखा। आज तक लिखा जा रहा है। कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी चर्चा हुई। 
    वर्तमान में सरकार धार्मिक स्थलों के विकास और धार्मिक पर्यटन पर फोकस कर रही है। कोटा में के. पाटन मंदिर और कोटा में मथुराधीश जी मंदिर विकास की योजना स्वागत योग्य हैं। क्या सरकार हाड़ोती अंचल में बिखरी पुरातत्व संपदा पर ध्यान देगी ? सर्वे करा कर कोई योजना बनाएगी ? सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करेगी ? इसे पर्यटन से जोड़ेगी ? चर्चा कई बार हुई पर हुआ कुछ नहीं। विश्व विरासत गागरोन किले की बदहाली ही देख लें, पर्यटकों को निराशा हाथ लगती है, सुविधाओं का अभाव खटकता है।
  ऐसा न हो पुरातत्व संपदा पर अभिमान करने वाला हाड़ोती अंचल किसी दिन जर्जर होती विरासत से खाली जेब की तरह हो जाए। मुख्यमंत्री जी से हाड़ोती के इतिहासविदों और पर्यटन प्रेमियों की ओर से पुर जोर आग्रह हैं समय रहते जर्जर होती विरासत को धूलधूसरित होने से बचाने के कदम उठाए जाएं। 
 

 


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