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बेपरवाह

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19 Jul 23
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- डॉ. दीपक आचार्य 9413306077

बेपरवाह

बेपरवाह

हाथी

कहाँ तक उलझे

भौंकने वाले

कुत्तों से,

कहाँ शहर का गजराज

और कहाँ

गली-गली में गुर्राते

कुत्तों के डेरे,

हाथी

बंद कर लेता है

अपने कानों की खिड़कियाँ

अन्दर की ओर,

और

बेफिक्र होकर

बढ़ता रहता है

मंजिल की ओर

कुत्तों को सायास चिढ़ाते हुए।

चलता रहता है

यह सिलसिला बदस्तूर

कुत्तों को

बगैर टुकड़े डाले

हाथी के आगे बढ़ते रहने का।


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